प्राचीन भारत का इतिहास,.गैर–धार्मिक साहित्य(iii) विदेशी स्त्रोत,रोम व यूनानी लेखक

.गैर–धार्मिक साहित्य
धर्म के अलावा अन्य साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य कहा जाता है। इसमें ऐतिहासिक पुस्तकें, जीवनी, वृत्तांत इत्यादि शामिल हैं। गैर-धार्मिक साहित्य में विद्वानों व कूटनीतिज्ञों की रचनाएँ प्रमुख है। यह साहित्य अपेक्षाकृत सटीक है। इससे प्राचीन राज्यों में विद्यमान राजव्यवस्था, अर्थवयवस्था, लोगों की जीवनशैली तथा तत्कालीन समाज के बारे में उपयोगी जानकारी मिलती है।

6वीं शताब्दी में पाणिनि एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान था।पाणिनी द्वारा रचित “अष्टाध्यायी” संस्कृत व्याकरण है, इसमें 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के समाज पर प्रकाश डाला गया है। मौर्यकाल में कौटिल्य की पुस्तक “अर्थशास्त्र” से शासन व्यवस्था की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। विशाखदत्त द्वारा रचित “मुद्राराक्षस”, सोमदेव द्वारा रचित “कथासरितसागर” तथा क्षेमेद्र द्वारा रचित “वृहतकथामंजरी” से मौर्यकाल के बारे में काफी जानकारी मिलती है। इन पुस्तकों में तत्कालीन धार्मिक, आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था सभी पहलुओं के बारे में पता चलता है।

पतंजलि द्वारा रचित “महाभाष्य” तथा कालिदास द्वारा रचित “मालविकाग्निमित्र” से शुंग वंश के इतिहास के बारे में ज्ञात होता है। शूद्रक द्वारा रचित  “मृच्छकटीकम” तथा दंडी द्वारा रचित “दशकुमारचरित” से गुप्तकाल की सामजिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। बाणभट्ट द्वारा लिखी गयी हर्षवर्धन की जीवनी “हर्श्चारिता” में सम्राट हर्षवर्धन का गुणगान किया गया है।  जबकि वाकपति द्वारा रचित “गौडवाहो” में कन्नौज के शासक यशोवर्मन और विल्हण के “विक्रमांकदेवचरित” में कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्ठ की उपलब्धियों का गुणगान किया गया है।

संध्याकरनंदी की रामचरितमानस में पाल राजा रामपाल की उपलब्धियों का वर्णन है।  हेमचन्द्र द्वारा रचित “द्वयाश्रय काव्य” में गुजरात के शासक कुमारपाल की उपलब्धियों का गुणगान किया गया है।  पद्मगुप्त की “नवसहसांकचिरत” में परमार वंश तथा जयानक की “पृथ्वीराज विजय” में पृथ्वीराज चौहान का वर्णन है। कल्हण द्वारा लिखित “राजतरंगिनी” भारतीय इतिहास की कालक्रम के लिए अति महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसमें विभिन्न राज्यों की वंशावलियों का विस्तृत वर्णन किया गया है।  यह पुस्तक 12वीं शताब्दी में कल्हण द्वारा लिखी गयी थी।  इसके कुल 8 अध्याय हैं।

दक्षिण भारत के इतिहास के सम्बन्ध में संगम साहित्य से जानकारी प्राप्त होती है।  यह साहित्य अधिकतर तमिल और संस्कृत में है।  संगम साहित्य में चोल, चेर तथा पांड्य शासनकाल की सामाजिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था तथा संस्कृति इत्यादि का विस्तृत वर्णन है।  उसके बाद के  इतिहास की जानकारी नंदिक्कलम्ब्कम, कलिंगतुपर्णी, चोलचरित इत्यादि से प्राप्त होती है।

(iii) विदेशी स्त्रोत
विदेशी साहित्य से भी भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिलती है। यह विदेशी लेखक विदेशी राजाओं के साथ भारत आये अथवा भारत की यात्रा पर आये, जिसके उपरान्त उन्होंने भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा भौगोलिक व्यवस्था का वर्णन किया। विदेशी साहित्यिक स्त्रोतों को 3 भागों में बांटा जा सकता है –  यूनानी व रोम के लेखक, चीनी लेखक तथा अरबी लेखक।

रोम व यूनानी लेखक

हेरोडोटस व टिसियस का वर्णन यूनानी लेखकों में सबसे प्राचीन है। हेरोडोटस ने “हिस्टोरिका” नामक पुस्तक लिखी थी, इस पुस्तक भारत और फारस के संबंधो पर प्रकाश डाला गया था, हेरोडोटस को इतिहास का पिता भी कहा जाता है।यूनानी शासक सिकंदर के साथ काफी यूनानी लेखक भारत आये, इनमे नियार्कस, आनासिक्रटस, अरिस्तोबुल्स के वृतांत महत्वपूर्ण हैं।  अरिस्तोबुल्स ने “हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर” नामक पुस्तक लिखी, जबकि आनासिक्रटस ने  सिकंदर की जीवनी लिखी। सिकंदर के बाद मेगस्थनीज, डायमेकस तथा डायनोसीयस का योगदान भी महत्वपूर्ण है। मेगास्थनीज़ के प्रसिद्ध पुस्तक इंडिका में मौर्यकालेन समाज, प्रशासन व संस्कृति का वर्णन है। प्लिनी की पुस्तक “नेचुरल हिस्टोरिका” में भारत की वनस्पति, पशुओं तथा खनिज पदार्थों के साथ-साथ भारत और इटली के मध्य व्यापारिक संबंधों का उल्लेख भी देखने को मिलता है।  टालेमी द्वारा रचित “जियोग्राफी” तथा प्लूटार्क व स्ट्राबो की पुस्तकों में भी भारत के विभिन्न पहलुओं का विवरण दिया गया है।

चीनी लेखक

चीनी मुख्यतः भारत में धार्मिक यात्रा के उद्देश्य से आये थे। वे मुख्यतः बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के उद्देश्य से भारत आये। चीन से भारत आने वाले यात्रियों में फाह्यान, ह्वेन्त्सांग तथा इत्सिंग प्रमुख हैं। फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया, उसने अपनी पुस्तक “फ़ो-क्यों-की” में भारतीय समाज, राजनीती तथा संस्कृति का वर्णन किया है।  ह्वेन्त्सांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया, उसने अपने यात्रा वृत्तांत में भारत की आर्थिक व सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डाला। तिब्बती लेखक तारानाथ ने अपनी पुस्तक “कंग्यूर” “तंग्युर” में भारतीय इतिहास पर प्रकाश डाला है।

अरबी लेखक

अरबी लेखक मुस्लिम आक्रान्ताओं के साथ भारत आये।आठवीं शताब्दी में अरब शासकों ने भारत पर आक्रमण शुरू कर दिए, अरब शासकों के साथ उनके लेखक व कवि भी भारत आये। 9वीं सदी में सुलेमान भारत आया, उसने पाल और प्रतिहार राजाओं के बारे में लिखा है। अलमसुदी ने राष्ट्रकूट राजाओं का वृतांत लिखा है। जबकि अलबरुनी ने अपनी पुस्तक “तहकीक ए हिन्द” में गुप्तकाल के पश्चात के समाज के बारे में लिखा है

प्राचीन काल की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें व उनके लेखक
पुस्तक का नाम लेखक
बुद्धचरित अश्वघोष
महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
कामसूत्र वात्स्यायन
मेघदूत कालिदास
नाट्यशास्त्र भरतमुनि
सूर्य सिद्धांत आर्यभट्ट
वृहतसंहिता वराहमिहिर
पञ्चतंत्र विष्णु शर्मा
रत्नावली हर्षवर्धन
पृथ्वीराजरासो चंदबरदई
मालतीमाधव भवभूति
गीत गोविन्द जयदेव
कादम्बरी बाणभट्ट

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अर्थ्यवस्था में प्रसिद्ध व्यक्तित्व

योजना

अर्थव्यवस्था में प्रसिद्ध व्यक्तित्व