दक्षिण भारत में उत्तर तलाशती भाजपा,तीन दिन बाद 6 अप्रैल को दक्षिण के जिन तीन राज्यो तमिलनाडु और पुनुचेरी में चुनाव होना है, वहां कि राजनीती उत्तर भारत से अलग है भाजपा के तीन शीर्स नेताओ मोदी शाह योगी की त्रिमूर्तिय क्या यहां कि पारम्परिक राजनीती में सेंध लगा पाएंगी

 तीन दिन बाद छह अप्रैल को तमिलनायु , पुपरी और केरल के मतदाता 404 विधायकों के निर्वाचन के लिए मतदान करेंगे । इन तीनों राज्यों में 28 से 30 राज्य स्तर के साथ - साथ जिला स्तर की पार्टियां सक्रिय हैं । भाजपा और कांग्रेस , दो राष्ट्रीय पार्टियां हैं , जो इन तीनों विधानसभाओं में अपनी पैठ बनाने के लिए एक - दूसरे को टक्कर दे रही है । राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , गृहमंत्री अमित शाह , कांग्रेस नेता राहुल गांधी और भाजपा के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्टार सनी हैं । प्रधानमंत्री मोदी अभियान के आखिरी दौर में अभी तमिलनाडु और केरल के 36 घंटे के चुनावी दौरे पर हैं । तमिलनाडु में यह एक पांच कोणीय लड़ाई है , हालांकि मुख्य मुकाबला अन्नाद्रमुक और द्रमुक के बीच है । बल्कि यह मुख्यमंत्री एडापडी और एम के स्टालिन , दो व्यक्तित्वों के बीच की लड़ाई है । उनके अलावा कमल हासन , टीटीवी दिनाकरन की पार्टी और लिट्टे समर्थक तमिल पार्टी ' नाम तमोझर ' हैं , जो वोट काटने करने का काम कर सकती हैं । न तो अन्नाद्रमुक के मुख्यमंत्री एडापडी पलानीस्वामी के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी रुझान है और न ही द्रमुक नेता एम के स्टालिन के पक्ष में कोई लहर है । ऐसा दो कद्दावर नेता जयललिता और करुणानिधि के निधन से खाली हुई जगह के कारण है । राजनीतिक प्रचार काफी हद तक व्यक्तिगत और महिला विरोधी हो गया है । 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसे द्रमुक नेता ए राजा के एक बयान से यहां काफी विवाद हो गया , जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा कि मुख्यमंत्री अपनी मां की अवैध संतान हैं जबकि एम के स्टालिन करुणानिधि के असली बेटे हैं । इस पर चुनाव आयोग ने हस्तक्षेप कर ए राजा को दो दिन के लिए स्टार प्रचारक राजनीति से रजनीकांत का अचानक पीछे हटना और शशिकला की रूप में प्रतिबंधित कर दिया । और भी
राजनीति से संन्यास की घोषणा ने अन्नाद्रमुक और विशेष रूप से पलानीस्वामी के लिए सकारात्मक ढंग से काम किया है । दूसरी ओर 234 सीटों वाली विधानसभा में द्रमुक 1996 के बाद से कभी सौ सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर सकी है । वह दस साल से सत्ता से बाहर है और इस बार बहुमत हासिल करने की भरपूर कोशिश कर रही है । अगर आपको तमिलनाडु की राजनीति को समझना है , तो यह समझना पड़ेगा कि जाति की राजनीति वहां प्रमुख भूमिका निभाती है । तमिलनाडु में चार प्रमुख जातियां हैं - वन्नियार , गौंडर , थेवर और नाडार । इसके अलावा ब्राह्मणों एवं अन्य उच्च जातियों का भी कुछ प्रतिशत है । बेशक यह एक द्रविड़ राज्य है , पर हिंदुओं की भी अपनी जगह है । यहां की .89 प्रतिशत आबादी जाति आधारित आरक्षण के दायरे में है । अल्पसंख्यकों की आबादी 20 प्रतिशत है । इस पृष्ठभूमि के साथ अगर आप राजनीति को समझते हैं , तो भाजपा इसे तोड़ने के लिए उत्सुक दिखती है । जिस तरह से पश्चिम बंगाल में भाजपा की रणनीति के पांच साल बाद कामयाब होने की उम्मीद है और वहां तृणमूल कांग्रेस एवं माकपा के लिए खतरा पैदा हो गया है , उसी तरह से भाजपा के शीर्ष नेताओं को उम्मीद है कि पांच साल के आक्रामक अभियान के बाद राज्य में द्रमुक का पतन हो जाएगा । द्रविड़ संस्कृति के कमजोर पड़ते ही वहां हिंदुत्व की तरफ लोगों का झुकाव हुआ है । इसका श्रेय उन युवाओं को जाता है , जो डिजिटल युग के बच्चे हैं , न कि किसी जाति या पंथ के प्रति दीवाने । तमिलनाडु में नकदी और मुफ्त उपहार बांटने की संस्कृति को बढ़ावा राहुल गांधी दिया गया है । हर गरीब मतदाता को द्रमुक और अन्नाद्रमुक की तरफ से प्रति वोट 5,000 रुपये की नकदी देकर आकर्षित किया जाता है । यह तमिलनाडु के चुनाव में एक परंपरा बन गई है । पुलिस या चुनाव आयोग की कोई भी कोशिश यहां काम नहीं करती है । नकदी का वितरण वैज्ञानिक तरीके से होता है । पहले 1,000 रुपये की किस्त के बदले मतदाता का राशन कार्ड या पैन कार्ड लिया जाता है । फिर दूसरी किस्त रूप में 1,000 रुपये दिए जाते हैं और तीसरी किस्त के लिए हरी पर्ची दी जाती है , जिसका भुगतान वोट डालने के बाद किया जाता है । हरी पर्ची लौटाने पर ही शेष रकम का भुगतान किया जाता है । मतदान के बाद राजनीतिक पार्टी राशन कार्ड या पैन कार्ड लौटा देती है । यह वचन देने के समान है । राज्य के चुनाव का नतीजा आगामी दो मई को आएगा । सट्टा बाजार और ओपिनियन पोल द्रमुक को बढ़त दे रहे हैं । मगर अन्नाद्रमुक ने यदि हैट्रिक लगाई , तो इससे प्रदेश की राजनीति पूरी तरह उलट - पुलट जाएगी जहां तक केरल की बात है , तो यहां माकपा आसानी से जीत सकती ओर है । माकपा के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने यहां बहुत अच्छा काम किया है । मगर सवाल है कि कांग्रेस का क्या होगा । इसके नेता वायनाड से सांसद हैं । केरल में राहुल गांधी माकपा की आलोचना कर रहे हैं , जबकि दो चरणों के मतदान के दौरान उन्होंने कभी कांग्रेस का प्रचार करने पश्चिम बंगाल का दौरा नहीं किया । गांधी परिवार के तीनों नेताओं - सोनिया , राहुल और प्रियंका को हार का डर है , इसलिए उन्होंने पश्चिम बंगाल का दौरा नहीं किया । प्रचार में हर कोई दूसरे पर आरोप लगा रहा है । माकपा कहती है कि कांग्रेस और भाजपा साथ जबकि कांग्रेस आरोप लगाती है कि माकपा हिंदू पार्टी बन गई है । खैर , योगी आदित्यनाथ केरल में हीरो बने हुए हैं । उनकी रैलियों में हिंदुओं की भारी भीड़ इकट्ठा होती है । विपक्षी गठबंधन यूडीएफ और भाजपा माकपा पर हमला करके और सवरीमाला मुद्दे पर भावनाओं को भड़काकर अभियान चलाने की कोशिश कर रहे हैं । पुडुचेरी की राजनीति भी काफी दिलचस्प है । इसकी वजह है कि कांग्रेस अब वहां सत्ता में नहीं है । भाजपा इस छोटे राज्य में कांग्रेस के बागियों की मदद से सरकार बनाने को इच्छुक है । भाजपा की गुप्त योजना पुडुचेरी के माध्यम से तमिलनाडु में प्रवेश की है । चाहे जिस कोण से आप देखें , भाजपा की दीर्घकालिक योजना 2024 के संसदीय चुनाव में जीत सुनिश्चित करने की है । भाजपा दक्षिण के छह राज्यों बना रही है । की कुल 130 लोकसभा सीटों में से 35 से 40 सीटें जीतने का लक्ष्य।                          
     
                                                     वरिष्ठ पत्रकार 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अर्थ्यवस्था में प्रसिद्ध व्यक्तित्व