अफगानिस्तान में दुश्मन बने दोस्त, अफगानिस्तान में अमन बहाली के लिए रूस आज उन्हीं तालिबान की हिमायत कर रहा है, जिनसे मूह कि खाने पर कभी उसे काबुल से बाहर जाना पड़ा था। समय कैसे बदल जाता है! सोवियत संघ के जमाने में जो दुश्मन थे, वे आज भावी अफगान सरकार के लिए जरूरी है।

अ सेना ने चारों तरफ पने जीवनकाल में मैंने भू - राजनीति में इतने बदलाव देखे हैं कि अपने क्षेत्र में बदलती भू - राजनीति अब मुझे जरा भी हैरान नहीं करती । कौन भूल सकता है कि कुछ दशक पहले वह सोवियत संघ ही था , जिसकी लाल घिरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया था । तब यही लगा था कि अफगानिस्तान जैसे छोटे मुल्क के पास महाशक्ति देश के सामने खड़े होने की कभी ताकत भी नहीं होगी । लेकिन जल्द ही दर्जनों देशों ने संसाधन भेजे और फिर अफगान मुजाहिदीन का उदय हुआ , जो सोवियत संघ से लड़ने के लिए उठ खड़े हुए । आखिरकार महाशक्ति देश को शर्मिंदा होकर लौटने पर मजबूर होना पड़ा और अपने पीछे वह अराजकता व दशकों के युद्ध से जर्जर एक देश छोड़ गया । पाकिस्तान ने देखा कि अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के बाद न सिर्फ दूसरे देशों की काबुल में दिलचस्पी खत्म हो गई है , बल्कि अफगानिस्तान की बदहाली का खामियाजा उसे खुद भी भुगतना पड़ा । पाकिस्तान को तब दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी आबादी को तो झेलना पड़ा ही था , क्योंकि लाखों अफगानों ने डुरंड रेखा को पार कर पाकिस्तान को अपना घर बना लिया था , हजारों शरणार्थी अब भी पाकिस्तान में हैं । फिर अफगान शरणार्थियों को उदारता से दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता भी धीरे - धीरे बंद हो गई । अब संयुक्त राष्ट्र से भी बहुत कम सहायता राशि आ रही है । अफगान शरणार्थियों के साथ पाकिस्तान को सोवियत निर्मित क्लाशिन्कोव राइफल भी विरासत में मिली , जिसके चलते हमारे समाज ने खुद को हथियारबंद करना शुरू किया । हेरोइन का भी प्रचलन शुरू हुआ , जो अब अफगानिस्तान से आ रहा है और पाकिस्तानी समाज के लिए लगातार एक बड़ी समस्या बना हुआ है । इस हफ्ते अफगानिस्तान के बारे में लिखने का कारण रूसी विदेश मंत्री लावरोव सर्गेई की यात्रा थी , जो इस हफ्ते नई दिल्ली से इस्लामाबाद के दौरे पर आए थे । इससे पहले 2012 में रूस के विदेश मंत्री पाकिस्तान आए थे । रूसी विदेश मंत्री के पाकिस्तान दौरे की एक प्रमुख वजह अफगानिस्तान के विगड़ते हालात भी हैं । हालांकि वक्त के साथ - साथ पाकिस्तान और रूस के रिश्ते सुधरे हैं , लिहाजा बैठक में कुछ अन्य साझा मुद्दों पर भी चर्चा हुई । सर्गेई शीर्ष राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व से मिले , जिनमें प्रधानमंत्री इमरान खान , विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा भी शामिल थे । जब मैं भू - राजनीतिक हकीकतों के बदलने की बात करती हूं , तब उसका मतलब यह है कि आज रूस उन्हीं अफगान मुजाहिदीन के साथ खड़ा है , जिन्होंने उसे हराया था । हालांकि आज उन्हें अफगान मुजाहिदीन नहीं कहा जाता , बल्कि सामान्य तौर पर वे अब अफगान तालिबान के नाम से जाने जाते हैं । और अफगान तालिवान भी अब सोवियत रूस से नहीं लड़ रहे , बल्कि अपने ही अफगानी भाइयों और वहां मौजूद विदेशी सैनिकों से लड़ने में व्यस्त हैं । रूसी विदेश मंत्री को अफगान तालिवान को भावी अफगानी व्यवस्था में शामिल करने का समर्थन करते हुए सुनना वाकई दिलचस्प था । समय किस तरह बदल चुका है ! सोवियत संघ के जमाने में जो दुश्मन थे , वे आज भावी अफगान सरकार के लिए जरूरी और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं ! भारत दौरे में भी रूसी विदेश मंत्री सर्गेई ने अफगानिस्तान की भावी सरकार में अफगान तालिबान को शामिल करने के बारे में बात की । भारत भी अब इस जमीनी हकीकत की स्वीकार करता है , कि अफगान तालिबान की अनदेखी नहीं की जा सकती , और पहली बार यह सुनने को मिला कि मोदी सरकार ने अफगानिस्तान के भविष्य में अफगान तालिबान की भूमिका मानने को हरी झंडी दे दी । सनद ने इस्लामाबाद में मीडिया को बताया कि ' हम अफगानिस्तान में सुरक्षा के मार्च पर विगई , हालात , आतंकवादी गतिविधियों में बढ़ोतरी तथा देश के उत्तर व पूर्व में इस्लामिक स्टेट के उभार से भी परेशान है । पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से बातचीत के बाद सर्गः ने कहा , ' दोनों पक्ष अफगानिस्तान में शांति बहाली पर सहमत है । हमें अफगानिस्तान में विरोधाभासी और शत्रुतापूर्ण पक्षों को आगे बढ़ाकर एक समझौते पर पहुंचने और समावेशी बातचीत के जरिये गृहयुद्ध को समाप्त कराने की जरूरत है । दूसरे शब्दों में , सस अब पाकिस्तान से अफगान तालिबान पर अपने असर का इस्तेमाल करने के लिए कह रहा है , ताकि वे अपने हथियार डाल दें , लड़ाई बंद कर दें और अमन को एक मौका दें । हालांकि हकीकत यह है कि आज अफगान तालिबान पर पाकिस्तान का पूर्ण नियंत्रण नहीं है । वे आजाद हैं और यह देख सकते है कि लड़ने की उनकी रणनीति कामयाब हो चुकी है । अब जय हर कोई थक चुका है , तब वे अपनी सफलता का स्वाद पाना चाहते हैं । पाकिस्तान भी उन्हें नाराज नहीं करना चाहता , क्योंकि वह पश्चिमी सीमाओं पर नाराज पड़ोसी नहीं चाहता । अफगानिस्तान के हालात जल्दी नहीं सुधरने वाले । अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के इस एलान से भी मुश्किलें खड़ी हो गई है कि अमेरिकी सैनिक मई में अफगानिस्तान नहीं छोड़ रहे । बाइडन के इस एलान से अफगान तालिवान नाराज हैं और उन्होंने ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा जमाने के लिए अपनी लड़ाई तेज करने की धमकी दी है । आम पाकिस्तानी के लिए हालांकि अफगानिस्तान से ज्यादा यह खवर मायने रखती है कि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए रूस स्पूतनिक वैक्सीन की डेढ़ लाख खुराक भेजेगा । इससे पहले पाकिस्तान के निजी क्षेत्र ने स्पूतनिक की 50 हजार खुराकें खरीदी थीं , पर देश के अमीरों में वे खप गईं । चूंकि यह महामारी जल्दी खत्म नहीं होने वाली , ऐसे में , पाकिस्तान और रूस ने स्पुतनिक वैक्सीन तैयार करने के लिए पाकिस्तान में फैक्टरी लगाने पर भी विचार किया है । अभी तक पाकिस्तान के लिए टीकों की सबसे बड़ी सौगात चीन से आई है , जिसे पाकिस्तान सरकार मुफ्त में बांट रही है । इसके साथ - साथ निजी क्षेत्र ने भी चीनी टीके खरीदे हैं और लोग पैसे देकर टीका लगवाना चाहते हैं ।

                                      वरिष्ट पत्रकार MR BR P

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