महामारी ने बदला चिकित्सा का पाठ कोरोना संकट ने अमेरिका के मेडिकल स्कूलों का फोकस बदल दिया है । वे न केवल भविष्य के लिए कोरोना से जुड़े विविध पहलुओं का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं , बल्कि मानविकी के छात्रों को अपने अध्ययन से जोड़ रहे हैं , ताकि नए निष्कर्ष सामने लाए जा सकें ।
पि छले करीब एक साल से चिकित्सकीय शोध पर पूरी तरह से विराम लग गया है , क्योंकि मेडिकल शोधार्थियों का फोकस कोरोना वायरस वैक्सीन के ट्रायल और इलाज पर है । वैक्सीन की खोज में जुटे रहने की लगन रंग लाई । दवा निर्माताओं ने रिकॉर्ड समय में जीवनदायी वैक्सीन की खोज कर डाली , और अभी तक एक तिहाई अमेरिकियों का आंशिक टीकाकरण हो चुका है । लेकिन कोरोना जैसी सदी में एक बार कहर बरपाने वाली महामारी शायद चिकित्सा पेशेवरों और मेडिकल स्कूलों को आधुनिक चिकित्सा के पारंपरिक औजारों से परे हटकर सोचने और इस मुद्दे पर व्यापक विचार - विमर्श को प्रेरित करे कि कोविड जैसे जन स्वास्थ्य संकट के अवसरों के लिए हम अपने डॉक्टरों को कैसे प्रशिक्षित करें । महामारी के शुरू होते ही मेडिकल स्कूलों ने सतर्कता जारी कर दी । अमेरिका के पूर्वोत्तर हिस्से में महामारी का प्रकोप शुरू होते ही येले स्कूल ऑफ मेडिसिन ने ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दी और अनेक छात्रों को क्लिनिकल रोटेशन पर ले गए । ' स्कूल के डीन ने हमें एक ई - मेल भेजा था कि घर जाएं और इस समय का इस्तेमाल पढ़ाई में करें ' , एक छात्र जॉर्डन ग्मैनी टिआको ने मुझसे कहा । मुझे लगा कि ओह , अब मैं आनेवाली परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ाई नहीं कर सकती । टिआको ने कुछ सहपाठियों के साथ मिलकर और फैकल्टी के कुछ सदस्यों को शामिल कर आनन - फानन में एक नया कोर्स तैयार किया , जिनमें और चीजों के अलावा कोविड -19 : ए हिस्ट्री ऑफ द प्रेजेंट नाम से एक प्रासंगिक लेकिन वैकल्पिक पाठ भी था । इसकी कक्षाएं जूम पर शुरू हुईं और कुल 65 छात्रों ने महामारी के अपने अनुभवों को लिखना और विश्लेषण करना शुरू किया । कुछ छात्रों ने महामारी से संबंधित अफवाहों और गलत जानकारियों के बीच अपने दोस्तों और परिवारों की मदद शुरू की , तो कुछ छात्र उन समुदायों के बीच गए , जिनके लिए राहत की व्यवस्था सबसे कम थी । कोरोना के पाठ में सिर्फ मेडिकल साइंस की बंदिश नहीं रखी गई । इसमें दर्शनशास्त्र , इतिहास , दृश्य कला , रचनात्मक लेखन और फिल्म के भी छात्र थे । और इन सबके सामने एक ही व्यापक लक्ष्य था : लोगों को इस तरह से प्रशिक्षित करना कि वे महामारी से जूझ रहे लोगों को राहत पहुंचा सकें । ' इस कोर्स ने यह साबित किया कि चिकित्सा की पढ़ाई में मानविकी के छात्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है ' , येले यूनिवर्सिटी के इतिहासकार जोआन्ना रैडिन कहते हैं , जिन्होंने यह पाठ तैयार करने में भूमिका निभाई । एक छात्रा ने महामारी के दौरान यहूदी धर्म पर लेख लिखा । एक दूसरे छात्र ने न्यू हैवन में कांटेक्ट ट्रेसर के रूप में काम करते हुए एक कहानी लिखी । जबकि कुछ छात्रों ने तस्वीरें खींची , तो कुछ ने शॉर्ट वीडियो बनाया । यह सच है कि इनमें से कोई भी छात्र महामारी से पीड़ित लोगों की जान बचाने में सक्षम नहीं हुआ । लेकिन यह बिल्कुल संभव है कि दीर्घावधि में मानविकी के छात्र कुछ ऐसा अप्रत्याशित काम करें , जिससे डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने का तरीका ही बदल जाए या स्वास्थ्य सेवा के बारे में नए नजरिये से सोचा जाना शुरू हो । इतिहास और दर्शनशास्त्र के छात्रों का सोशल मेडिसिन , औषधि इतिहास और जैवचिकित्सीय नैतिकशास्त्र के जरिये चिकित्सकीय शिक्षा में लंबे समय से प्रभाव रहा है । पेन के कॉलेज ऑफ मेडिसिन ने वर्ष 1967 में अपने मेडिकल स्कूल में पहली बार मानविकी विभाग की
स्थापना की थी । हाल के दशकों में मेडिकल ह्यूमिनिटीज के सांस्थानिक विकास की गति बहुत तेज रही है । प्रसिद्ध ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द लांसेट का एक खंड है - द आर्ट ऑफ मेडिसिन , जिसमें इस पर फोकस रहता है कि चिकित्सा का क्षेत्र किस तरह इतिहास , साहित्य , आचार शास्त्र , धर्म और दर्शन से जुड़ा हुआ है । प्राचीन और प्रारंभिक आधुनिक चिंतकों के मुताबिक , औषधि विज्ञान धर्मविज्ञान और प्राकृतिक दर्शन से अलग नहीं है : मनुष्य के शरीर या पर्यावरण में आया असंतुलन आत्मा को परेशान करता है । कोरोना महामारी ने फिर से चिकित्सा विज्ञान और मानविकी की सीमाओं को धुंधला और अप्रासंगिक कर दिया है । जाहिर है , चिकित्सा मानविकी के लिए यह चुप बैठने का समय नहीं है । महामारी के अनेक पहलू हैं , जिनमें मानविकी की पृष्ठभूमि का ज्ञान ज्यादा मददगार हो सकता है , जैसे कि अश्वेतों और लैटिन अमेरिकियों की अधिक मृत्यु दर या श्वेत धर्मप्रचारकों द्वारा वैक्सीन के प्रति झिझक आदि । वर्ष 2000 की शुरुआत से ही नैरेटिव मेडिसिन की एक शाखा लगातार प्रभावी हो रही है , जिसके तहत छात्रों को रचनात्मक लेखन , इतिहास , फिल्म , नृतत्वशास्त्र आदि के बारे में बताया जाता है । इस शाखा की जड़ें गहरी हैं । हमारी सभ्यता के कुछ बेहतरीन इतिहासकार वस्तुतः वे डॉक्टर रहे हैं , जिन्होंने मानवीय त्रासदी के बारे में बताने के लिए खुद लिखना पसंद कियाः एंटोन चेखोव , विलियम कार्लोस विलियम्स , वॉकर पर्सी , ओलिवर सैक्स - और आज के दौर में अतुल गवांडे , डैनिला लामास , सिद्धार्थ मुखर्जी और विंसेंट लाम जैसे लेखकों का नाम इस संदर्भ में लिया जा सकता है । यह जानना थोड़ा आश्चर्यजनक हो सकता है कि कोविड -19 के इस दौर में अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध डॉक्टर एंथोनी फाउसी एक प्रतिबद्ध मानवतावादी हैं । चूंकि कोविड के इस दौर में मेडिकल स्कूल अपने पाठ्यक्रम में बदलाव कर रहे हैं , ऐसे में , उन्हें अपने छात्रों को बताना चाहिए कि चिकित्सा शास्त्र विज्ञान नहीं , बल्कि मानविकी का हिस्सा है , जिसमें विज्ञान एक औजार भर है । हालांकि मेडिकल स्कूल ये भी समझ रहे हैं कि छात्रों का दाखिला सिर्फ उनके अंकों के आधार पर नहीं किया जा सकता । कई छात्रों के नंबर कम हो सकते हैं , लेकिन रोग की पहचान क्षमता या मरीजों के प्रति संवेदना उनमें ज्यादा हो सकती है । कोविड का यह संकट दुनिया भर के वैज्ञानिकों तथा मानवतावादियों के लिए नए सवाल पूछने तथा एक दूसरे से अधिक से अधिक सीखने का अवसर होना चाहिए ।
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