भगवान महावीर के पाठ में जीवन कला
ओ 25 अप्रैल पर विशेष शो कहते हैं , " भगवान महावीर का रास्ता निषेध और नकार का महावीर जयंती है । उनका रास्ता एक डॉक्टर का रास्ता है । जैसे पर्वतों में हिमालय है या शिखरों में गौरीशंकर , वैसे ही व्यक्तियों में महावीर हैं । " भगवान महावीर के पाठ हमें जिंदगी को आसान बनाने में मदद करते हैं , इसलिए आज हमें भगवान महावीर की सख्त जरूरत है । भगवान महावीर , जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे । करीव 600 वर्ष पहले कुंडलपुर के क्षत्रिय वंश में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां जन्मे महावीर को वर्धमान , वीर , अतिवीर और सन्मति आदि नामों से भी जाना जाता है । भगवान महावीर ने समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया । खान - पान और रहन - सहन में अनुशासन भगवान महावीर के शुरुआती 30 वर्ष राजसी वैभव और विलासिता में बीते । उसके बाद 12 वर्ष तक जंगल में मंगल साधना और आत्म जागृति की आराधना में वे इतने लीन हो गए कि उनके शरीर के कपड़े गिरकर अलग होते गए । इस मौन तपस्या के बाद उन्हें ' कैवल्य ' प्राप्त हुआ । इसके बाद 30 वर्ष तक महावीर ने जन - कल्याण हेतु चार तीर्थों , साधु - साध्वी , श्रावक - श्राविका की व्यवस्था का प्रतिपादन किया । इन सर्वोदय तीर्थों में क्षेत्र , काल , समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं । महावीर का कहना था कि ' हम दूसरों के प्रति भी वही व्यवहार और विचार रखें , जो हमें स्वयं को पसंद हो । ' यही उनका ' जीयो और जीने दो ' का सिद्धांत है । उन्होंने कहा , " सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं , और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं । " उन्होंने न केवल इस जगत को मुक्ति का संदेश दिया , अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई । आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य , अहिंसा , अपरिग्रह , अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे मूलभूत सिद्धांत भी बताए । कहते हैं कि इन्हीं सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर महावीर ' जिन ' कहलाए । जिन से ही ' जैन ' बना है । भगवान महावीर ने अपनी इंद्रियों को जीत लिया और जितेंद्र कहलाए । वे जिंदगी में खान - पान और रहन - सहन को लेकर अनुशासन के पक्षधर थे ।
जिंदगी में उम्मीद के रास्ते भगवान महावीर ने बेहतर जीवन के लिए पांच सूत्र बताए थे
आज के कठिन हालात में वे सूत्र हमें रास्ता दिखाते हैं । अहिंसा का भाव- महावीर स्वामी अहिंसा के पुजारी थे । उनका मानना था कि किसी भी जीव पर हिंसा नहीं करनी चाहिए । सब के प्रति प्रेम का भाव रखना चाहिए । सदा सच बोलो- मनुष्य को सत्य का मार्ग जरूर अपनाना चाहिए । किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए । अपरिग्रह- जो मनुष्य आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करता है , ऐसे व्यक्ति को दुखों से कभी भी छुटकारा नहीं मिल सकता है । अस्तेय- अस्तेय का मतलब है चोरी न करना । चोरी का अर्थ सिर्फ भौतिक वस्तुओं का हरण नहीं , बल्कि खराब नीयत भी है । दूसरे की सफलताओं से विचलित होकर उन्हें हराने के लिए अनैतिक तरीके अपनाना भी एक प्रकार की चोरी है । ब्रह्मचर्य- ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपनी आत्मा में लीन हो जाना या अपने अंदर छिपे ब्रह्म को पहचानना । दुनिया की परवाह छोड़कर अपने मन की शांति की दिशा में काम करना ही ब्रह्मचर्य है ।
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