सौ साल सिंधु सभ्यता के पुनर्जन्म के पिछले साल इस सभ्यता के पहले स्थान हड़प्पा की खोज की शताब्दी थी , इस साल उसके जुड़वां शहर मोहेन जोदड़ो की खोज का शताब्दी वर्ष है । इस खोज के बिना हम पुरातत्व विज्ञान की अहमियत न जान पाते ।
सिंधु सभ्यता की खोज के सौ साल गए हैं , पिछले प्रणाली है , भाषा है । यह लंबे वर्णनों की भाषा न भी साल इस सभ्यता के पहले स्थान हड़प्पा की खोज की हो , सूत्रों में सब कुछ कहने की ओर प्रवल संकेत है , शताब्दी थी , जिसकी वजह से इसे हड़प्पा सभ्यता जिस दिन ये सूत्र डिकोड होंगे , पता नहीं क्या कहर कहने की परंपरा रही है । इस साल उसके जुड़वां शहर वरपा होंगे , मुमकिन है कि इस कांस्ययुगीन सभ्यता को कहे जाने वाले मोहेन जोदड़ो या मुअन जोदड़ो की इतिहास का स्वर्णयुग ही कहने लगे । यह लेखन खोज का शताब्दी वर्ष है । तो यह सौ टके का सवाल प्रणाली ठहरी हुई या जड़ लिपि और भाषा नहीं है , सौ साल पर पूछने , सोचने लायक है समय के साथ बदलती , विकसित कि हमने दक्षिण एशिया के उत्तरी होती लेखन प्रणाली है । दो या पश्चिमी इलाके की इस महत्वपूर्ण दो से अधिक लिपि और भाषा खोज से क्या सीखा , क्या पाया जो वाला एक अभिलेख मिलने इससे पहले इनसानी सभ्यता को तक शायद यह लिपि और हासिल नहीं था । दुष्यंत भाषा अबूझ ही रहने वाली है । सभ्यता की बौद्धिक सिंधु सभ्यता की लिपि के वारे . उपलब्धियां तो लिपि के बूझे जाने में एक दिलचस्प निष्कर्ष तक रहस्य ही रहेंगी । पर इतना तो शिलांग ( मेघालय ) में जन्मे निश्चित है कि लगभग चार हजार साल पहले दुनिया अमेरिकी पुरातत्वविद प्रोफेसर जोनाथन मार्क केनोयर की चार सभ्यताओं में एक साथ लिखने की शुरुआत का है कि यह लिपि केवल प्रभावशाली लोगों के लिए हुईः मैसोपोटामिया , इजिप्ट , चीन और सिंधु । पर धी , उन्हीं के नियंत्रण में थी । अपठित लिपि होने का दुर्भाग्य आज तक सिंधु सभ्यता इस सभ्यता की खोज ने हमें यह बताया कि भौतिक के साथ जुड़ा हुआ है । नए शोधों ने शुरुआती विद्वानों रूप से हमारे उपमहाद्वीप के पुरखे कितने सुसभ्य थे , की इस धारणा को खारिज कर दिया कि सिंधु की लिपि हलों को जोतकर खेती करते थे , इंटों को आग में अपनी समकालीन इन अन्य सभ्यताओं की लिपियों से पकाकर घर बनाते थे , किन औजारों , हथियारों , प्रभावित थी , अब माना जा रहा है कि सिंधुलिपि स्वतंत्र वस्तुओं , पशुओं की उनके जीवन में अहमियत थी । रूप से विकसित लिपि थी , पश्चिम से नहीं आई थी । कलात्मक अंकन में उनको कितनी रुचि - सुरुचि थी । यह केवल प्रतीक विधान नहीं है , लिखने की मुकम्मल इस सभ्यता ने पानी की अहमियत वताई , जल वितरण
बात है । यही हालत कालीबंगा की भी है , जिस इलाके को बचपन से देखा है , शायद हमारी सरकारों के पास वर्तमान को बचाने और भविष्य की ओर देखने से फुर्सत भी नहीं है , और विकासशील और अविकसित देशों की सरकारों की प्राथमिकताओं में शायद इतना धन भी इतिहास को सहेजने में लगाने के लिए नहीं है पर एक सच यह भी है कि वर्तमान और भविष्य की अनेक समस्याओं के समाधान गुजरे हुए कल में छुपे हुए होते हैं । इस खोज की एक बड़ी अहमियत यह भी है कि जिस नदी के सहारे यह जन्मी , जहां से फैली , उसी सिंधु के नाम से विदेशियों ने भारत को इंडिया कहना शुरू किया । चाहे अब यह इत्तेफाक है कि अब इस का बड़ा बहाव क्षेत्र आजादी के बाद हुए बंटवारे में पाकिस्तान में चला गया है । पुरातत्व में रुचि रखने वाले चार्ल्स मैसन , कनिंघम , जॉन मार्शल , व्हीलर जैसे अंग्रेज अफसरों , एलपी टैस्सीटोरी जैसे इतालवी विद्वान के साथ दयाराम साहनी , डीआर भंडारकर , हीरानंद शास्त्री , केएन दीक्षित , आरडी बनर्जी , बीबी लाल , आरएस विष्ट जैसे या सिंचाई का सिस्टम बनाया , पानी की निकासी को अनेक भारतीय पुरातत्वविदों ने इस सभ्यता को योजनाबद्ध रूप दिया , पर्यावरणीय परिवर्तनों की ओर खोजने , समझने , सुलझाने में बड़ा श्रम और मेधा इशारा किया , इसमें हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए निवेश किए हैं । इस अनुसंधान ने भारतीय इतिहास को संकेत और चेतावनियां छुपे हैं । इतिहास और इतिहास लेकर समझ का अपूर्व विस्तार किया है । आश्चर्य की की समझ यही काम करते हैं , यही उनका हासिल है , बात नहीं कि अगर इस सभ्यता की खोज नहीं होती तो यही जरूरत- अहमियत । जैसे हर डॉक्टर को बेहतर शायद हम भारतीय लोग पुरातत्व विज्ञान को भी इतना इलाज के लिए मरीज की मेडिकल हिस्ट्री की जरूरत जान न पाते , उसकी अहमियत को मान न पाते और होती है , पूरी मानव सभ्यता को भी अपने इतिहास की फिल्म रामसेतु की कहानी कहने के लिए अक्षय कुमार को पुरातत्ववेत्ता के अवतार में पर्दे पर न आना पड़ता । कुछ साल पहले बीबीसी की पत्रकार राजिया मिथकों और पौराणिक कथाओं को जनमानस में इकवाल जब मोहेनजोदड़ो गई थीं , तो फिर से लुप्त इतिहास के रूप में स्वीकृति के लिए पुरातत्व के होते इस प्राचीन महान शहर की हालिया हालत को समर्थन की जरूरत होती है , यह ऐतिहासिक समझ देखकर निराश हुई थीं । यह मोहेन जोदड़ो पर आशुतोष पुरातत्व की अहमियत के प्रसार से ही संभव हुई
- लेखक फिल्म प्रोफेशनल और स्वतंत्र इतिहासकार हैं ।
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