आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बन चुके हैं.

आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बन चुके हैं.

लेकिन इन दोनों के बारे में हमारे स्कूलों-कॉलेजों में कुछ तरकीबों और तथ्यों के जमघट के अलावा कुछ खास बताया और सिखाया नहीं जाता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तो बात ही नहीं की जाती. जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही वह चीज है, जो इंसान को तर्क पर आधारित फैसले लेने की सीख दे सकता है. और ये तर्कसंगत फैसले ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचा सकते हैं. 
आज विज्ञान और तकनीकी की बदौलत बहुत ही तेजी से बदलाव हो रहा है और इस बदलाव का प्रवाह इतनी तेज है कि हम इसे रोक नहीं सकते. हाँ, ज्यादा से ज्यादा इस बदलाव की रफ्तार को कुछ कम किया जा सकता है और इसकी कोशिश की जा सकती है कि बदलाव उचित दिशा में ही हो. वैसे भी लोकतांत्रिक देशों के लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मौजूदगी जरूरी भी है, जिससे वे महत्वपूर्ण निर्णय ले सकें.
विज्ञान में जिज्ञासा रखने और बढ़ाने के लिए जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण होनी चाहिए, जिससे वे वैज्ञानिक विषयों पर निर्णय ले सकते हैं. नाभिकीय हथियार, जैव-विविधता का खात्मा, जेनेटिक इंजीनियरिंग, ग्लोबल वार्मिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या बढ़ते मशीनीकरण जैसे मुद्दों पर उन्हें जानकारी होनी चाहिए. इसलिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अर्जित ज्ञान के समुचित प्रचार-प्रसार के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना बहुत जरूरी है तभी देश का सकारात्मक दिशा में विकास होगा और आम लोगों में वैज्ञानिक चेतना जगाई जा सकेगी. भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए हर साल आज के दिन यानि 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है.
राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एन.सी.एस.टी.सी.) के तत्वाधान में हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है. सन् 1928 में इसी दिन सर सी. वी. रामन ने अपनी खोज ‘रमन प्रभाव’ की सार्वजनिक घोषणा की थी. इसी खोज के लिए उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. इसलिए इस महत्वपूर्ण खोज के याद में विज्ञान संस्थानों, विज्ञान अकादमियों, स्कूल और कॉलेजों में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया जाता है. इस तरह के आयोजन का मुख्य उद्देश्य छात्रों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करना, जनसाधारण को वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति जागरूक बनाना और उनके बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार करना है. 
लंबे अर्से से अनेक सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं और काफी अर्से से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, जन-विज्ञान जत्था, विज्ञान कांग्रेस जैसे कार्यक्रम भी आयोजित होते आ रहे हैं. मगर क्या हम विश्वास से यह कह सकते हैं कि आम आदमी की विज्ञान में दिलचस्पी बढ़ी है? अंधविश्वासों और दक़ियानूसी विचारों में कमी आई है?  हमारे सामाजिक जीवन और विज्ञान के बीच तालमेल बढ़ा है?  दु:ख की बात है, मगर सच है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के स्तर पर हम आज भी कंगाल हैं.
हमारे देश मे बहुत से लोग विज्ञान और तकनीक में अंतर नहीं कर पाते. वे विज्ञान को तकनीक या तकनीक को ही विज्ञान समझ लेते हैं. विज्ञान वह आधारभूत ज्ञान है जो प्रयोग, अवलोकन और निष्कर्ष पर आधारित होता है. विज्ञान का मतलब है प्रकृति के बारे में सवाल पूछना और उस सावल का जवाब बिना किसी पूर्वाग्रह के ढूंढना. जबकि तकनीक वैज्ञानिक जानकारी का सामाजिक उपयोगिता में होनेवाला इस्तेमाल है. यह बेहद अजीब बात है कि हमारे यहाँ युगों पुराने अंधविश्वास अत्याधुनिक तकनीक के साथ खड़े दिखाई देते हैं. अक्सर हमें यह विरोधाभास देखने को मिल जाता ही जाता है. उदाहरण के लिए, अक्सर स्मार्टफोन और लैपटाप से लैस व्यक्ति भी अंधविश्वासपूर्ण घटनाओं को बिना जांच-पड़ताल के स्वीकारता दिखाई देता है!  
आज हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह देख रहे हैं कि वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्राप्त तकनीकों को तो स्वीकार कर लेते हैं, मगर उनके पीछे के वैज्ञानिक चिंतन को अस्वीकार कर देते हैं. इस दुहरे बर्ताव के पीछे एक ठोस कारण यह है हमारे समाज में तकनीक का स्तर जितना ऊंचा हो गया है, उतने ही उच्च स्तर का विज्ञान लोगों को नहीं मिला है. हमारे देश में आधुनिक विज्ञान अंग्रेजों के जरिए पहुंचा, इसलिए सूर्यकेंद्री सिद्धांत और जैविक विकासवाद जैसे सिद्धांतों पर हमारे देश में उतनी खलबली नहीं मची, जितनी यूरोप में मची थी. यहाँ पर विज्ञान जीवन का दृष्टिकोण नहीं बल्कि भौतिक उन्नति का प्रभावशाली साधन बना. कहा जाता है कि सूचना अज्ञान को दूर करती है, मगर भारत में ऐसा नहीं हुआ! 
संविधान के मुताबिक सरकार का भी यह दायित्व है कि वह नागरिकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकसित होने लायक माहौल बनाए. आज के हालात को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि आजादी के बाद की सरकारें अपना दायित्व अच्छे से नहीं निभा पाई हैं. शुरुआती दौर में ऐसी संस्थाएं जरूर बनाई गईं जिनका काम देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था, मगर ये संस्थान भी कागजी कार्रवाइयों से आगे नहीं बढ़ पाए. 
देशवासियों की सोच को सीधे प्रभावित करने वाली जीवनदशाएं बदलें इसका प्रयास नहीं किया गया. कुछ लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आए, समृद्धि भी आई कुछ तबकों में, लेकिन गरीबी और लाचारी की मौजूदगी बनी रही आसपास. ऐसे में जो गरीबी में बने रहे वे किसी चमत्कार से अमीरी की चमकती दुनिया में पहुंच जाने की लालसा पाले रहे तो जो समृद्धि के करीब पहुंच चुके थे, वे भी वापस गरीबी-लाचारी के चंगुल में चले जाने की आशंकाओं से घिरे रहे. आशंका, असुरक्षा की यह निरंतरता अवैज्ञानिकिता, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता के लिए खाद-पानी की निर्बाध सप्लाई का सबसे बड़ा स्रोत बनी रही.
मेरा मानना है कि हर आदमी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जन्म लेता है. बच्चा खुद ही हर चीज को छूना, महसूस करना, प्रयोग करना और खोजना चाहता है. यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मूल तत्व है. हालांकि पारिवारिक, सामाजिक और पारंपरिक प्रभावों या जिस तरह से हमारे स्कूलों-कॉलेजों में शिक्षा दी जा रही है, उसके कारण बच्चा सवाल करने और प्राकृतिक घटनाओं का अन्वेषण करने की जन्मजात प्रवृत्ति को खो देता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब महज परखनली को ताकना, इस चीज और उस चीज को मिलाना और छोटी या बड़ी चीजें पैदा करना नहीं है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब है दिमाग को और ज़िंदगी के पूरे ढर्रे को विज्ञान के तरीकों से और पद्धति से काम करने के लिए प्रशिक्षित करना.
अंतिम बात यह कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण इंसान को हर मुद्दे को बिना किसी पूर्वाग्रह के जाँचने-परखने में सक्षम बनाता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति किसी भी चीज पर इसलिए यकीन नहीं कर लेता कि उसके बारे में किसी और ने बताया है या वह चली आ रही परंपरा के अनुकूल है बल्कि वह तभी किसी चीज पर यकीन करता है जब उसका कोई वैज्ञानिक आधार हो. आमजन में वैज्ञानिक चेतना फैलाने, बढ़ाने से हमारा और हमारी आनेवाली पीढ़ियों का जीवन बेहतर होगा. यह तो राष्ट्र, समाज और इस दुनिया की तात्कालिक जरूरत है.  आइए, आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के उपलक्ष्य पर प्रण लें कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार की दिशा एकजुट होकर काम करें.

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