यहूदी धर्म , आंदोलन

यहूदी धर्म  

आंदोलन

पूर्वी यूरोप और विशेषतः रूस में हसकाला ने पुरोहितवाद का विरोध और व्यावहारिक सामाजिक और आर्थिक सुधारों की माँग करने का रूप ले लिया। हिब्रू और रूसी भाषा का साहित्य उन लेखकों के बीच फलने-फूलने लगा, जिन्होंने स्वयं को रूसी नागरिक और यहूदी धर्म को अपना धर्म घोषित किया। यिद्दिश साहित्य, जो पूर्वी यूरोपीय देशों में 12वीं और 13वीं शताब्दी में शुरू हुआ था, 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में पनपा। हालांकि 1881 की सामूहिक हत्याओं के कारण इस आंदोलन का अंत हो गया, हसकाला से यहूदी धार्मिक सुधार की उत्पत्ति हुई। जिसकी नेपोलियन युग (1800-1815) दौरान पश्चिमी यूरोप में शुरुआत हुई। फ़्रांस में सुधार सैद्धांतिक थे, जबकि जर्मनी में यह पूजा की सुंदर विधियों पर केंद्रित थे। जर्मन सुधार 1840 में संस्थागत हो गए, हालांकि ये अधिकांश यूरोप में विफल रहे और आसानी से अमेरिका में स्वीकार किए गए, जहाँ ये सुधार के प्रारंभिक रुझान के साथ घुलमिल गए।

अब इस सुधार आंदोलन से संकुचित विचार वाले यहूदी धर्म की शुरुआत हुई, जो जर्मनी में 1845 में प्रारंभ हुआ। इसने विकासात्मक धर्म के रूप में यहूदी धर्म की परिकल्पना की, लेकिन रीति-रिवाजों में मुख्यतः पारंपरिक नियमों के पालन पर आ गया।

यूरोप के अधिकांश यहूदियों ने सुधार आंदोलन को ठुकरा दिया। यद्यपि कुछ उल्लेखनीय हासिडिम ने पश्चिमीकरण का पूरी तरह बहिष्कार जारी रखा और इनमें से अधिकांश धर्म में रूढ़िवादी, लेकिन संस्कृति और तौर-तरीक़ो में पश्चिमी बन गए। पश्चिमीकरण के विकास के साथ विद्वानों ने यहूदी इतिहास और संस्कृति के धर्मनिरपेक्ष अध्ययन तथा विज्ञान, चिकित्सा और गणित में यहूदी धर्म के योगदान का अध्ययन शुरू कर दिय। जब अधिकांश यहूदियों ने मौखिक क़ानून की दिव्यता के विधान को अस्वीकार कर दिया। उस समय यहूदी दार्शनिकों ने निरंतरता के प्रश्न का विरोध किया। विभिन्न उत्तरों में से उन्होंने यहूदी धर्म को ईश्वर के साथ व्यक्तिगत साक्षात्कार के सघन स्वरूप या धार्मिक राष्ट्रवाद के रूप में ऐतिहासिक या नैतिक प्रक्रिया का वाहक माना।

यहूदी धर्म को उसके धर्मनिरपेक्ष पहलुओं में सुधार आंदोलन के परिणाम को देखा जा सकता है, 19वीं शताब्दी के आगमन के साथ यूरोपीय राष्ट्रवाद और सामीवाद के विरोध की प्रतिक्रिया से यहूदी धर्म ने राष्ट्र-पुनर्जागरण और पुनर्वास का कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जो 1948 में इज़राइल देश के गठन के साथ संपन्न हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद यहूदी धर्म ग़ैर यूरोपीय धर्म बन गया, जो इज़राइल, अमेरिका और रूस तथा अन्य पूर्व सोवियत गणराज्यों में केंद्रित था। विश्व में यहूदी धर्म का अरब राष्ट्रों के साथ टकराव हुआ, जबकि यहूदी धर्म के प्रत्येक समुदाय में धर्मनिरपेक्षता की भावना बढ़ती गई है। फिर भी यहूदियों में अपने धर्म के प्रति अत्यधिक उत्साह और उसकी ऐतिहासिक परंपराओं के अहसास से लगाव दिखाई देता है।


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