भारत कि भूमिका,baiden के प्रशासन ने हाल ही में भारत कि भूमिका को रेखांकित किया है,ऐसे दुसंब बे सम्मेलन में विदेश जयशंकर कि मौजूदगी का महत्व बड़ता गया , जहा उन्होंने जोर देकर युद्ध से जर्जर इस देश के भीतर और उसके आसपास दोहरी शांति कायम करने का जोर दिया है।

मेरिका के बाइडन प्रशासन ने हाल ही में अफगानिस्तान में शांति के प्रयास को लेकर जो नया खाका पेश किया हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में विदेश मंत्री एस जयशंकर के इस बयान का महत्व समझा जा सकता है , जिसमें उन्होंने कहा है कि युद्ध से जर्जर इस देश के भीतर और उसके आसपास ' दोहरी शांति कायम करने की जरूरत है । दस साल पहले अफगानिस्तान में शांति कायम करने की दिशा में प्रयास करते हुए इंस्ताबुल में हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस की शुरुआत हुई थी , मगर पिछले साल कोविड -19 की महामारी के कारण इसका आयोजन नहीं हो सका था । बेशक यह सम्मेलन बहुत कामयाब न हुआ हो , पर इसने अफगानिस्तान और उससे जुड़ी साझा चिंता को रेखांकित किया है । भारत अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का पक्षधर है और इस दिशा में उसने हमेशा अपनी भूमिका निभाई है । लेकिन यह भी सच है कि पिछले कुछ वर्षों में अफगानिस्तान में उसके  भूमिका हितों के बावजूद शांति वार्ता में भारत की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं थी चाहे वह दोहा में तालिबान के साथ हुआ समझौता हो या मास्को में हुई वार्ता । मगर अब अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी को पत्र लिखकर अफगानिस्तान में संक्रमणकालीन शांति सरकार की स्थापना , उसके बाद आम चुनाव करवाने और फिर अफगानिस्तान में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में भारत , रूस , चीन , पाकिस्तान , ईरान और अमेरिका के सम्मेलन का प्रस्ताव दिया है । गौर करने वाली बात यह है कि इस संक्रमणकालीन सरकार में तालिवान को शामिल करने के साथ ही नए संविधान के निर्माण का भी सुझाव है । निश्चित रूप से भारत अफगानिस्तान सहित किसी भी दूसरे देश की संप्रभुता का सम्मान करता है , पर तालिबान को लेकर उसके मन में हिचक रही है । अफगानिस्तान के भविष्य में तालिबान की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता , बल्कि सच तो यही है कि उनके बिना वहां कोई भी शांति प्रक्रिया आगे ही नहीं बढ़ सकती । इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन की भूमिका से सतर्क रहने की जरूरत है । दुशांबे सम्मेलन में जयशंकर ने एकदम सही कहा है कि सम्मेलन के सदस्य देशों को सबसे पहले अफगानिस्तान में हिंसा खत्म करने के लिए दबाव बनाना चाहिए । अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका को सीमित करके ही शांति कायम की जा सकती है ।

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