जो करोड़ों लोग आर्थिक - सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे थे , वे अब गरीबी , स्वास्थ्य , शिक्षा , कौशल और सार्वजनिक सेवाओं की प्राप्ति जैसे मापदंडों पर अधिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं तथा गरिमामय जीवन से और दूर हो गए हैं ।

जो करोड़ों लोग आर्थिक - सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे थे , वे अब गरीबी , स्वास्थ्य , शिक्षा , कौशल और सार्वजनिक सेवाओं की प्राप्ति जैसे मापदंडों पर अधिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं तथा गरिमामय जीवन से और दूर हो गए हैं । 

गौरतलब है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( यूएनडीपी ) द्वारा प्रकाशित मानव विकास सूचकांक 2020 में 189 देशों की सूची में भारत 131 वें पायदान पर है । पिछले वर्ष प्रकाशित इस सूचकांक में भारत 129 वें पायदान पर था । यूएनडीपी ने अपनी एक और रिपोर्ट में कहा है कि कोविड -19 महामारी के गंभीर दीर्घकालिक परिणामों के चलते दुनिया में 2030 तक
20.70 करोड़ और लोग घोर गरीबी की ओर जा सकते हैं । ऐसे में कोविड -19 के गंभीर दीर्घकालिक परिणामों का भारत पर भी प्रतिकूल असर होगा । सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट ( सीएसई ) की नई रिपोर्ट के अनुसार , कोविड -19 महामारी के कारण भारत की गरीब आबादी में करीब एक करोड़ 20 लाख लोग और जुड़ जाएंगे , जो विश्व में सर्वाधिक है ।
इसी प्रकार पिछले दिनों प्रकाशित वैश्विक भूख सूचकांक ( जीएचआई ) 2020 में 107 देशों की सूची में भारत 94 वें स्थान पर है । पिछले साल 117 देशों की सूची में भारत का स्थान 102 था । यह चिंताजनक है कि देश में खाद्य उपलब्धता और देश की दो तिहाई आबादी के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में आने के बावजूद देश के करोड़ों लोग भूख और कुपोषण की चुनौती का सामना कर रहे हैं । इसी तरह विश्व बैंक के द्वारा तैयार किए गए 174 देशों के वार्षिक मानव पूंजी सूचकांक 2020 में भारत का 116 वां स्थान है । यह सूचकांक मानव पूंजी के प्रमुख घटकों स्वास्थ्य , जीवन प्रत्याशा , स्कूल में नामांकन और कुपोषण पर आधारित है । चूंकि रिपोर्ट के ये आंकड़े मार्च 2020 तक के हैं , लेकिन इसके बाद देश में कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप तेजी से बढ़ा है । ऐसे में देश में मानव पूंजी के निर्माण में कोरोना महामारी ने जोखिम बढ़ा दिया है । महामारी का आर्थिक प्रकोप विशेष रूप से महिलाओं और सबसे वंचित परिवारों के लिए बहुत अधिक रहा है , जिसके चलते कई परिवार खाद्य असुरक्षा और गरीबी के शिकार हैं । वस्तुतः कोविड -19 की चुनौतियों के बीच देश में लोगों के स्वास्थ्य , शिक्षा , कौशल विकास , रोजगार और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के साथ - साथ उनके जीवनस्तर को ऊपर उठाने की दिशा में अब लंबा सफर तय करना है । विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बनाए गए ' कमीशन ऑन मैक्रो इकॉनॉमिक्स ऐंड हेल्थ ' ने इस बात के पुख्ता सबूत दिए कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च व्यय नहीं , बल्कि एक बेहतरीन निवेश है । यूरोपीय देशों ने महामारियों और संचारी रोगों को आर्थिक विकास और मानवीय कल्याण के लिए खतरे के रूप में देखा है । इन देशों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने पर बड़ा निवेश किया है । पिछले दशकों में यूरोप में तेजी से बढ़ी जीवन प्रत्याशा और आर्थिक वृद्धि , दोनों ही मजबूत स्वास्थ्य सेवाएं और स्वस्थ जनमानस के कारण ही परिलक्षित हुई हैं ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अर्थ्यवस्था में प्रसिद्ध व्यक्तित्व