औ द्योगिक क्रांति की शुरुआत से ही किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए ऊर्जा और ऊर्जा का उत्पादन एवं वितरण केंद्र में रहा है ।
औ द्योगिक क्रांति की शुरुआत से ही किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए ऊर्जा और ऊर्जा का उत्पादन एवं वितरण केंद्र में रहा है ।
विश्व के सभी देश अपनी अर्थव्यवस्था को कृषि से औद्योगिकीकरण और सर्विस सेक्टर की तरफ ले जा रहे हैं । कोयला , तेल , प्राकृतिक गैस , शेल गैस , परमाणु ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों जैसे विभिन्न ऊर्जा संसाधनों की खोज , कभी - कभी शोषणकारी भी बन जाती है , जो हमें पश्चिम एशिया में भू - राजनीतिक वातावरण में कई बार तनाव के रूप में दिख जाती है । वर्तमान में कई देश न केवल ऊर्जा के वैकल्पिक नवीकरणीय संसाधनों की खोज कर रहे हैं , बल्कि प्रौद्योगिकियों , प्रक्रियाओं और उपकरणों का आविष्कार कर रहे हैं , जो कुशलता से ऊर्जा की खपत करते हों । संयुक्त राष्ट्र ने भी सतत विकास लक्ष्यों ( एसडीजी ) के तहत ऊर्जा और उसकी दक्षता को सम्मिलित किया है ।
इसी क्रम में , सतत ऊर्जा और दक्ष खपत के लिए सभी देशों की सरकारों से अपनी नीतियों और कार्यक्रमों में इन लक्ष्यों को सम्मिलित करने का आग्रह किया है । भारत खुद को विश्व का मैन्युफैक्चरिंग सेंटर बनाने के लिए प्रयासरत है , जो कि सरकार के ' मेक इन इंडिया ' प्रोग्राम से परिलक्षित होता है । पर इन सब के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में खास तरीके से ध्यान देने की आवश्यकता है ।
2015 में , भारत सरकार ने ' स्मार्ट सिटीज ' मिशन शुरू किया । एक स्मार्ट शहर , वह शहर है , जो बुनियादी ढांचा प्रदान करता है , स्वच्छ और टिकाऊ वातावरण के साथ अपने नागरिकों को जीवन की गुणवत्ता की स्थिति प्रदान करता है । स्मार्ट सिटी , स्मार्ट उपकरणों , मशीनों और शहर के संचालन के सतत तरीकों से संचालित होती है और इसमें ऊर्जा का संरक्षण और ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करने वाली प्रक्रियाएं भी बहुत ही अहम हैं । हमारे देश के शहरों का आकलन , ऊर्जा की खपत के संदर्भ में उनकी स्थिरता को कई दृष्टिकोणों से गंभीर रूप से विश्लेषण करने की आवश्यकता है । हमारे देश की विशाल आबादी के संदर्भ में ऊर्जा का दक्षता से प्रयोग करना , कई स्रोतों से ऊर्जा का उत्पादन करने के साथ - साथ महत्वपूर्ण है । ऊर्जा की मांग अर्थव्यवस्था की प्रकृति के अनुसार निर्धारित होती है । विभिन्न देशों , विभिन्न सेक्टरों के लिए मांग और खपत के जटिल और अलग पैटर्न भी होते हैं । फिर भी मुख्य रूप से देखें तो , देशों की प्राथमिक ऊर्जा आवश्यकता का लगभग 40 प्रतिशत ( यूरोपीय संघ के अध्ययन के अनुसार ) इमारतों के क्षेत्र में रख - रखाव में खपत होता है । इस ऊर्जा में से लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक ऊर्जा , प्रौद्योगिकियों , उपकरणों और प्रक्रियाओं के संचालन में चली जाती है , जो इमारतों के अंदर परिवेशी जीवन को अनुकूल बनाते हैं , जैसे कि हाटिग , वाटलेशन और एयर कंडीशनिंग सिस्टम । ऊर्जा के बिना विकास की कल्पना नहीं की जा सकती । ऊर्जा के कारण ही कई देशों को अर्थव्यवस्था की अस्थिरता का सामना करना पड़ा । जीवाश्म ईंधन पर भारत की ऊर्जा निर्भरता के परिणामस्वरूप 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार का और हाल में वेनेजुएला में नुकसान होना इसी के उदाहरण हैं । 2024-25 तक भारत को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की प्रधानमंत्री की दृष्टि , आठ प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी विकास दर की आवश्यकता की ओर इशारा करती है । भारत में आर्थिक विकास , शहरीकरण और नागरिकों की जीवनशैली के अलग - अलग पैटर्न के कारण ऊर्जा की मांग बढ़ रही है । औद्योगिक विकास के लिए ऊर्जा के व्यापक उपयोग की आवश्यकता होती है । इसी के साथ साथ देश के पास ऊर्जा संसाधनों का जो सीमित विकल्प है , उसको भी , जलवायु परिवर्तन की पहल और पेरिस समझौते की बाध्यताओं के तहत पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से उपयोग में लाना होगा । ऊर्जा संरक्षण का एक प्रसिद्ध नियम है कि ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है , बल्कि इसे केवल रूपांतरित किया जा सकता है । इसलिए स्मार्ट शहरों में आवश्यकता ऊर्जा का कुशलतापूर्वक उपयोग करना आवश्यक और महत्वपूर्ण है और इसकी शुरुआत इमारतों और शहरों को स्मार्ट इमारतों और स्मार्ट शहरों में बदलने से होगी , क्योंकि इमारतें ही ऊर्जा खपत में प्रमुख योगदानकर्ता हैं । लेखक दिल्ली विवि के क्लस्टर इनोवेशन सेंटर में सहायक प्राध्यापक हैं ।
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