भारतीय रेल के बारे में एक कहावत है कि चाहे जितनी भी देर हो जाए , ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंचेगी जरूर
भारतीय रेल के बारे में एक कहावत है कि चाहे जितनी भी देर हो जाए , ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंचेगी जरूर । वर्ष 2020 में भारतीय शेयर वा बाजार की यात्रा भी कुछ इसी तरह की रही । इस वर्ष पहली जनवरी को एस ऐंड पी बीएसई सेंसेक्स 41,306 अंकों पर था और देशव्यापी लॉकडाउन के प्रारंभिक चरण में तीन अप्रैल को यह 27,590 अंकों पर था । नौ महीने बाद पांच नवंबर को यह वहीं ( 41,340 अंकों ) पर पहुंच गया , जहां से इसने 2020 में यात्रा शुरू की थी , और जैसा कि आप पढ़ रहे हैं , 14 दिसंबर को यह 46,161 अंकों पर बंद हुआ । दीर्घकालीन निवेशकों को हमेशा यह एहसास हुआ है कि बाजार में रहकर धन बनाने में कामयाब रहे हैं । लेकिन भारतीय शेयर बाजारों के आकर्षक होने की हालिया खबर हालिया आंकड़ों पर आधारित एक तथ्य है । विदेशी संस्थागत निवेशकों ( एफपीआई ) को , यह निवेश का एक तरीका है , जिसमें विदेशी निवेशक भारत में निवेश करते हैं , भारी लाभ मिला । विगत अक्तूबर में उन्होंने 21,826 करोड़ रुपये का निवेश किया , जो नवंबर में करीब तीन गुना बढ़कर 62,782 करोड़ रुपये हो गया । और इस महीने अब तक उन्होंने 36,096 करोड़ रुपये का निवेश किया है । एक सामान्य पर्यवेक्षक के लिए यह भारी धन की कमाई जैसा आकर्षक निवेश गंतव्य है । यह पूरी तरह गलत नहीं है , लेकिन यह पूरा सच भी नहीं है । अब जरा मुझे इसकी व्याख्या करने दीजिए । विगत मार्च में विदेशी संस्थागत निवेशक 1.18 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति वेचकर भारतीय बाजार से बाहर हो गए और इस साल अभी तक विदेशी संस्थागत निवेश 68,206 करोड़ रुपये है । यह आंकड़ा पिछले साल विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा किए गए 1,35,995 करोड़ रुपये के निवेश का आधा है । वर्ष 2018 में ये निवेशक शुद्ध विक्रेता थे और स्योंकि भारत एक मंजिलें
2017 में उन्होंने 2,00,048 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था । भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों का निवेश इस पर निर्भर करता है कि यहां उन्हें कितना लाभ मिल रहा है और वैश्विक बाजारों में उनकी क्या स्थिति है । वैश्विक शेयर बाजारों का आकार लगभग 810 खरब ( 81 ट्रिलियन ) डॉलर है और इसमें भारतीय बाजारों की हिस्सेदारी लगभग 20 खरब डॉलर है । इस तरह वैश्विक स्तर पर भारतीय शेयर बाजारों की हिस्सेदारी लगभग 2 से 2.5 फीसदी है , जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी 54 फीसदी , जापान की आठ फीसदी और ब्रिटेन की हिस्सेदारी छह फीसदी है । यानी भारत उसका एक छोटा - सा हिस्सा है । इसके अलावा , भारतीय बाजारों को उभरते बाजारों में रखा गया है , जिनमें दक्षिण अफ्रीका , ब्राजील , ताइवान , कोरिया और अन्य कई देश हैं । लिहाजा जब सामूहिक रूप से उभरते बाजारों की हिस्सेदारी की गणना की जाती है , तो भारतीय शेयर बाजार का आकार और भी कम हो जाता है । हां , शेयर बाजार के सूचकांकों में वृद्धि हुई है और जब आप इसे पढ़ रहे हैं , तब यह सर्वकालीन उच्च स्तर पर है , लेकिन इस वृद्धि का कारण पूरी तरह से भारतीय शेयर बाजार के आकर्षण को नहीं मानना चाहिए । उदाहरण के लिए , घरेलू म्यूचुअल फंड उद्योग और इसमें भी खासकर इक्विटी निवेश की स्थिति को देखिए । एएमएफआई के आंकड़ों के मुताबिक , इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में अक्तूबर के
3,991.01 करोड़ रुपये की तुलना में नवंबर में 13,004 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड तीन गुना उच्च स्तर का बाल्य प्रवाह देखा गया । मथ सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट के अनुसार , जो बताता है कि कितना नियमित इविवटी निवेश भारतीय बाजार में आया , अक्तूबर के 7,800 करोड़ रुपये की तुलना में नवंबर में यह आंकड़ा 7,302 करोड़ रुपये था । भारत एक निवेश गंतव्य है , जो हर हाल में एक पसंदीदा गंतव्य बनता जा रहा है । इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि भारत अच्छा है , बल्कि इसका कारण यह है कि अन्य जगहें इससे बदतर है । निवेशकों का इरादा पैसा बनाने का होता है और वे उन्हीं बाजारों और क्षेत्रों में पैसा लगाते हैं , जहां उन्हें अपने निवेश का लाभ मिलता है । अनेक विदेशी निवेशक इसलिए भी भारत में निवेश करते हैं , क्योंकि डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होने के कारण उनका मुनाफा स्वाभाविक ही बढ़ जाता है । शेयर बाजार की गतिविधियां आंकड़ों , कंपनियों के प्रदर्शन , निवेशकों की भावनाओं और खबरों पर आधारित होती हैं । ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में कोरोना वायरस वैक्सीन और लोगों को इसका टीका दिए जाने की घोषणा से यह संकेत मिला कि अनिश्चितता दूर होने वाली है और वायरस का प्रभाव खत्म होने वाला है । यह सकारात्मक संकेत भारत को देखते हुए एक अलग अर्थ देता है । चूंकि भारत की आबादी बहुत अधिक है , ऐसे में , वैक्सीन के क्षेत्र में काम करने वाली किसी भी फार्मा कंपनी को , भारत में टीकाकरण शुरू करने के बाद लाभ होगा । इसके अलावा आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के बावजूद भारत के विकास की कहानी बरकरार है , क्योंकि घरेलू मांग बढ़ने पर बाजार के ऊपर उठने की उम्मीद है । आत्मनिर्भर भारत अभियान के आह्वान के साथ कई भारतीय व्यवसायियों को इस कदम से लाभ होने की संभावना है । निवेशकों को अवसरों को सूंघ लेने और अपने दांव लगाने के लिए जाना जाता है आज भारत उभरते दूसरे बाजारों की तुलना में अधिक आकर्षक है । लेकिन ऐसा कब तक रहेगा , यह देखने वाली बात है । एक छोटे निवेशक को अपनी क्षमता और अपने वित्तीय लक्ष्यों के आधार पर निवेश करना चाहिए । चूंकि विदेशी निवेशक निवेश कर रहे हैं , इसे देखते हुए आंख मूंदकर निवेश करना बुद्धिमानी नहीं है । आखिर हम पिछले लोकसभा चुनाव के एक साल पहले यानी वर्ष 2018 को याद कर सकते हैं , जब विदेशी निवेशक उस वर्ष शुद्ध विक्रेता बन गए थे । हां , जिन निवेशकों के पास ज्यादा पैसा है , वे सकते हैं । अपने मुनाफे के लिए लंबे समय तक शेयर बाजार में पैसा लगा ही
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