शिया

शिया  

शिया  एक मुस्लिम संप्रदाय है, सुन्नियों के विरोधी हैं। यह हजरत अली को पैगंबर मानते हैं। मोहम्मद साहब के पीछे  चार ख़लीफ़ा यह नहीं मानते। यह अली के बेटों हसन और हुसैन को मानते हैं। शब्द अरबी शब्द ‘शी’, बहुवचन शिया, यानी इस्लाम की दो प्रमुख शाखाओ में से छोटी शाखा के सदस्य; जो बहुसंख्यक सुुुन्नइयो न से भिन्न हैं। आरंभिक इस्लामी इतिहास में शिया, महोम्मद के दामाद तथा चौथे वनडे (सांसारिक तथा आध्यात्मिक शासक) अली की सत्ता का समर्थन करने वाला एक राजनीतिक गुट हुआ करता था।

धार्मिक आंदोलन

ख़लीफ़ा के रुप में अपनी सत्ता क़ायम रखने का प्रयास करते हुए अली मारे गए और शियाओं ने धीरे-धीरे एक धार्मिक आंदोलन खड़ा कर दिया, जो अली के वंशजों 'लवियों' की वैधानिक सत्ता पर ज़ोर देता था। यह रवैया अधिक व्यावहारिक सुन्नी बहुसंख्यकों के रवैये के विपरीत था, जो ऐसे किसी भी ख़लीफ़ा या ख़लीफ़ा वंश का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार थे, जिसके शासन में धर्म का ठीक तरह से पालन किया जा सके तथा मुस्लिम विश्व में व्यवस्था क़ायम रखी जा सके।

सदियों तक शिया आंदोलन ने समूचे सुन्नी इस्लाम को गंभीर रुप से प्रभावित किया है और 20वीं सदी के अंतिम वषों में इसके अनुयायी लगभग 6 से 8 करोड़, यानी तमाम इस्लाम धर्मावलंबियों का 10वां हिस्सा थे। शिया का संप्रदाय ईरान इराक़ और संभवत: यमन (सना) में बहुमत का पंथ है और इसके अनुयायी सीरिया, लेबनान पूर्वी अफ्रीका, भारत तथा पाकिस्तान में भी है।

656 में अली को कई अन्य लोगों के अलावा तीसरे ख़लीफ़ा उस्मान के हत्यारो के समर्थन से ख़लीफ़ा बनाया गया था। लेकिन अली को सभी मुस्लिमों का कभी समर्थन नहीं मिला और इसलिए सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें लगातार असफल युद्ध करने पड़े। 661 में अली की हत्या कर दी गई और उनके मुख्य विरोधी मुअविया ख़लीफ़ा बन गए। बाद में अली के पुत्र हुसैन ने मुअविया के पुत्र और ख़लीफ़ा पद के उत्तराधिकारी यजीद को मान्याता देने से इनकार कर दिया। अली की पूर्व राजधानी, इराक़ के शिया बहुल नगर कुफ़ा के मुस्लिमों ने हुसैन को ख़लीफ़ा बनने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन इराक़ में आम मुस्लिम हुसैन को समर्थन नहीं दे सके और वह तथा उनके समर्थकों का छोटा-सा समूह इराक़ के प्रशासक के सिपाहियों के हाथों कुफ़ा के निकट कर्बला की लड़ाई में मारे गए।यह स्थान आज शियाओं का तीर्थस्थल है।

विजयी उमय्या शासन के ख़िलाफ़ा बदला लेने की कसम खाए कुफ़ावासियों को शीघृ ही अन्य समूहों से समर्थन प्राप्त हुआ, जो यथास्थिति का विरोध करते थे। इनमे मदीना के कुलीन मुस्लिम परिवार, इस्लाम की ज़्यादा दुनियावी व्याख्या का विरोध करने वाले र्धमपरायण लोग और ख़ासकर इराक़ के ग़ैर अरब मुस्लिमों  शामिल थे, जो सत्ताधारी अरबों से समानता की मांग कर रहे थे। समय के साथ शिया ऐसे संप्रदायों का समूह बन गए, जिनमें एक समानता थी कि वे सब अली और उनके वंशजो को मुस्लिम समुदाय का वैधानिक नेता मानते थे। शियाओं का यह दृढ़ मत कि अलीदों को ही इस्लामी विश्व का नेता होना चाहिए, इन सदियों में कभी साकार नहीं हो सका। हालांकि अलीदों ने कभी सत्ता नहीं पाई, लेकिन अली को सुन्नी इस्लाम के एक प्रमुख नायक के रुप में मान्यता मिली और मोहॉम्मद की पुत्री फ़ातिमा से हुए उनके वंशजों को सैयद व शरीफ़ की सम्मानजनक उपाधियाँ दी गई।


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