इस्लाम धर्म अल्लाह, फ़रिश्ते, शैतान

इस्लाम धर्म  

अल्लाह, फ़रिश्ते, शैतान

दुनिया के सारे धर्म प्रायः सारे पदार्थों को दो श्रेणियों में विभक्त करते हैं, अर्थात् जड़ और चेतन। चेतन के भी दो भेद हैं - ईश्वर, जीव। जीवों में ही फ़रिश्ते शैतान भी हैं।

अल्लाह

अल्लाह

ईश्वर को ‘क़ुरान’ ने सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता माना है, जैसा कि उसके निम्न उद्धरणों से मालूम होगा -

  • “वह (ईश्वर) जिसने भूमि में जो कुछ है (सबको) तुम्हारे लिए बनाया।“
  • “उसने सचमुच भूमि और आकाश बनाया। मनुष्य का क्षुद्र वीर्य – बिन्दु से बनाया। उसने पशु बनाए, जिनसे गर्म वस्त्र पाते तथा और भी अनेक प्रकार के लाभ उठाते हो, एवं उन्हें खाते हो।“
  • “वह तुम्हारा ईश्वर चीज़ों का बनाने वाला है। उसके सिवाय कोई भी पूज्य नहीं है।“
  • “ईश्वर सब चीज़ों का स्रष्टा तथा अधिकारी है।“
  • “निस्सन्देह ईश्वर भूमि और आकाश को धारण किए हुए है कि वह नष्ट न हो जाए।“
  • “जो परमेश्वर मारता और जिलाता है।“
  • ईश्वर बड़ा ही दयालु है, वह अपराधों को क्षमा कर देता है -
“निस्सन्देह तेरा ईश्वर मनुष्यों के लिए उनके अपराधों का क्षमा करने वाला है।“
  • आस्तिकों पर ही नहीं, फ़रिश्तों पर भी—
“इस बात में (हे मुहम्मद !) तेरा कुछ नहीं, चाह वह (ईश्वर) उन (क़फ़िरों) को क्षमा करे या उन पर विपद डाले, यदि वह अत्याचारी है।“
  • ईश्वर सत्य है -
“परमेश्वर सत्य है।“
  • ईश्वर का न्यायकारी होना इस प्रकार से कहा गया है -
“क़यामत के दिन हम ठीक तौलेंगे, किसी जीव पर कुछ भी अन्याय नहीं किया जाएगा। चाहे वह एक सरसों के बराबर ही क्यों न हो, किन्तु हमारे पास में पूरा हिसाब रहेगा।“
  • निम्न वाक्य के अनेक ईश्वरीय गुण बतलाए गए हैं -
“परमेश्वर जिसके सिवाय कोई भी ईश्वर नहीं है - जीवन और सत् है। उसे नींद या औंघ नहीं आती। जो कुछ भी भूमि और प्रकाश में है, वह उसी के लिए ही है। जो कि उसकी आज्ञा के बिना उसके पास सिफ़ारिश करे? वह जानता है, जो कुछ उनके आगे या पीछ है, वह कोई बात उससे छिपा नहीं सकते, सिवाय इसके कि जिसे वह चाहे विशाल भूमि और प्रकाश की कुर्सी, जिसकी रक्षा उसे नहीं थकाती वह उत्तम और महान् है।“

  • परमेश्वर माता - पिता - स्त्री - पुत्रादि रहित है -
“न वह किसी से पैदा हुआ है, न उससे कोई पैदा है।“
  • ईश्वर में मार्ग में खर्च करने का वर्णन इस प्रकार है -
“कौन है जो कि ईश्वर को अच्छा कर्ज़ दे, वह उसे कई गुना बढ़ाएगा।“
“निस्सन्देह दाता स्त्री–पुरुषों ने परमेश्वर को अच्छा कर्ज़ दिया है, उनका वह दुगुना होगा, और उनके लिए (इसका) अच्छा बदला है।“

फ़रिश्ता

फ़रिश्ता

स प्रकार पुराणों  में परमेश्वर के बाद अनेक देवता भिन्न–भिन्न काम करने वाले माने जाते हैं, यमरााज मरत्यु के अध्यक्ष, इंदु  वृष्टि के अध्यक्ष इत्यादि, इसी प्रकार ‘इस्लाम’ ने फ़रिश्तों’ को माना है। पहले फ़रिश्तों के सम्बन्ध में क़ुरान में आए कुछ वाक्य देने पर इस पर विचार करना अच्छा होगा, इसलिए यहाँ वे वाक्य उदधृत किए जाते हैं- “जब हमें (परमेश्वर) ने फ़रिश्तों को (आदम के लिए) दण्डवत करने को कहा, तो सबने दण्डवत की, किन्तु इब्लीस ने इन्कार कर दिया, घमण्ड किया और (वह) नास्तिकों में से था।““जब हमने फ़रिश्तों को दण्डवत करने का कहा, तो इब्लीस के अतिरिक्त सभी ने किया। (इब्लीस) बोला - क्या मैं उसे दण्डवत करूँ जो मिट्टी से बना है।““जब हमने फ़रिश्तों को कहा - आदम को दण्डवत करो तो (उन्होंने) दण्डवत की, किन्तु इब्लीस, जो जिन्नो  था  - ने किया।“

ऊपर के वाक्यों में फ़रिश्तों का वर्णन आया है। भगवान ने आदम (मनुष्य के आदि पिता) को बनाकर उन्हें आदम को दण्डवत करने को कहा। सबने वैसा किया, किन्तु इब्लीस ने न किया। यह इब्लीस उस समय फ़रिश्तों में सबसे ऊपर (देवेन्द्र) था। तृतीय वाक्य में जो उसे ‘जिन्न’ कहा गया है, उससे ज्ञात होता है कि फ़रिश्ते और जिन्न एक ही हैं या जिन्न फ़रिश्तों के अंतर्गत ही कोई जाति है। इब्लीस ने यह कह कर आदम को दण्डवत करने से इन्कार किया कि वह मिट्टी से बना है। अतः मालूम पड़ता है कि उत्पत्ति किसी और अच्छे पदार्थ से हुई है। अन्यत्र इब्लीस के वाक्य ही से मालूम हो जाता है कि उनकी उत्पत्ति अग्नि से हुई है। अपने भक्तों की रक्षा के लिए ईश्वर इन फ़रिश्तों को भेजते हैं।

शैतान

भेद

इस्लाम धर्म के पाँच भेद किये जाते हैं-

(i) नित्य वे आधारभूत हैं, जिन्हें हर रोज़ करना चाहिए। इस्लाम में निम्न पाँच कर्तव्यों को हर मुसलमान के लिए अनिवार्य बताया गया है-

  1. प्रतिदिन पाँच वक़्त (फ़जर, जुहर, असर, मगरिब, इशा) नमाज़ पढ़ना
  2. ज़रूरतमंदों को जकात (दान) देना
  3. रमज़ान के महीने में सूर्योदय के पहले से लेकर सूर्यास्त तक रोज़ा रखना
  4. जीवन में कम से कम एक बार हज अर्थात् मक्का स्थित काबा की यात्रा करना तथा
  5. इस्लाम की रक्षा के लिए ज़िहाद (धर्मयुद्ध) करना।

(ii) नैमित्तिक कर्म वे कर्म हैं, जिन्हें करने पर पुण्य होता है, परन्तु न करने से पाप नहीं होता।

(iii) काम्य वे कर्म हैं जो किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं।

(iv) असम्मत वे कर्म हैं जिनकों करने की धर्म सम्मति तो नहीं देता, किन्तु करने पर कर्ता को दण्डनीय भी नहीं ठहराता।

(v) निषिद्ध (हराम) कर्म वे हैं, जिन्हें करने की धर्म मनाही करता है और इसके कर्ता को दण्डनीय ठहराता है।

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