आपको किसी दूसरे आदमी की तरह बनने की जरूरत नहीं और अपना स्वतंत्र अस्तित्व का प्रवृत्ति से बाहर निकलना होगा ।

आपको किसी दूसरे आदमी की तरह बनने की जरूरत नहीं और अपना स्वतंत्र अस्तित्व  का प्रवृत्ति से बाहर निकलना होगा । 

आपको दूसरों की तरह बोलने या दूसरों के चेहरों को अपना चेहरा समझने की भूल से बचना होगा । मनुष्य को एक चीज मिली है ,  सकती है , वह चीज उसे याद दिलाती रहती है कि  और वह चीज है अपनी नियति को जानना । जब नियति किसी मनुष्य से बाहरी तौर पर जुड़ती है , तो वह उसे कमजोर करती है , जैसे कि एक प्रक्षिप्त तीर अचानक एक हिरण को जमीन पर गिरा देता है । लेकिन जब मनुष्य भीतर से अपनी नियति से साक्षात्कार करता है , तो वह मजबूत बनता है ,    । जिस व्यक्ति ने अपनी नियति को जान लिया है , वह कभी उसे बदलने की कोशिश नहीं करता । अपनी नियति को बदलने की कोशिश करना एक किस्म का बचपना है , जिससे मनुष्यों में विवाद पैदा होता है और वे एक दूसरे की हत्या तक कर डालते हैं । दुख , कटुता और मृत्यु थोपी गई नियति हैं । जबकि इस पृथ्वी पर किया गया हर सच्चा कार्य तथा हर अच्छा खुशियों भरा और सार्थक कार्य जीवंत नियति है , जो मनुष्य को उसकी स्वतंत्र पहचान और अस्तित्व के बारे में बताती है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दुख , हताशा और चुनौतीपूर्ण जीवन स्थितियों से भागा जाए । बेशक आप जो दर्द महसूस कर रहे हैं , वह आपकी जीवंत नियति नहीं हो सकता , उस दर्द से निकली आवाज मीठी नहीं हो सकती । पर उसका सामना तो मनुष्य को करना ही पड़ता है । आगे बढ़ना और कष्ट भोगना , इस दोनों को मिलाकर ही हमारा जीवन बनता है । ये दोनों वस्तुतः एक ही हैं । एक बच्चा पैदा होते समय ही कष्ट सहता है । वह जीवन भर कभी यहां , तो कभी वहां कष्ट भोगता है और अंततः एक दिन मृत्यु के साथ ही उसके कष्टों का अंत हो जाता है । जीवन को थोड़ी व्यापकता में देखे - समझे जाने की जरूरत है । मनुष्य में जो अच्छी चीजें हैं 
इस दोनों को जीवन बनता है । ये दोनों वस्तुतः एक ही हैं । एक बच्चा पैदा होते समय ही कष्ट सहता है । वर्षा वह जीवन भर कभी यहां , तो कभी वहां कष्ट मनुष्यों भोगता है और अंततः एक दिन मृत्यु के साथ ही उसके कष्टों का अंत हो जाता है । जीवन नियति को थोड़ी व्यापकता में देखे - समझे जाने की जरूरत है । मनुष्य में जो अच्छी चीजें हैं , जिनके लिए उसकी प्रशंसा होती है , वह भी उसके भोगे हुए जीवन का अच्छा हिस्सा है वह उसकी अच्छी और जीवंत नियति है । इस भोगे हुए जीवन की सार्थकता है । हमारा आधा जीवन तो भोगते या भुगतते हुए ही बीतता है , और जो जितने कुशल ढंग से इनका सामना करता है , उसका जीवन उतना सार्थक है । हमारे जन्म लेने का मतलब है कष्ट भोगना , हमारे बड़े होने का अर्थ है मुश्किलों का सामना करना । मिट्टी में दबा हुआ बीज धरती के कष्ट सहता है , वृक्षों की जड़ों रिश का वेग सहना पड़ता है , फूल बनने की प्रक्रिया में कलियां कष्ट सहती हैं । ठीक इसी तरह मनुष्य नियति के कष्ट सहता है । यह धरती नियति है , वर्षा और प्रकृति तथा मनुष्यों में बड़े होने की प्रक्रिया नियति है । दरअसल नियति चोट पहुंचाती है अपने कष्टों से सीखना कठिन कार्य है । महिलाएं कष्टों का बेहतर तरीके से सामना करती हैं और कष्टों से सीखने में वे पुरुषों की तुलना में ज्यादा सफल हैं । इसलिए इस मामले में पुरुषों को महिलाओं से सीखना चाहिए । जब हमारा जीवन बोलता है , तब उससे सीखें । जब नियति का सूर्य आपकी परछाई से खेलता है , तब उसे देखना सीखें । जीवन कितना भी बदरंग क्यों न हो , उसका आदर करना सीखें । इसी तरह कला है । जीवन से यह सीखें कि कष्ट ही हम आप खुद को भी सम्मान दे पाएंगे , क्योंकि प्रशंसा से परे अपना सम्मान करना भी एक कला है। जीवन से यह सीखे की कष्ट ही हमें मजबूती देते है।          


                                               सागर जी महाराज

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