wages act 1948
1. ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 (The Trade Unions Act, 1926):-
कर्मचारियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए ट्रेड यूनियन बहुत मजबूत माध्यम हैं. इन यूनियनों की मदद से ही श्रमिकों द्वारा कंपनी के हायर मैनेजमेंट को कर्मचारियों की उचित मांगो को मनवाया जाता है.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1) (c) सभी को "संघ या यूनियन बनाने का अधिकार देता है". ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926, को 2001 में संशोधित किया गया था.
2. मजदूरी भुगतान एक्ट, 1936 (The Payment of Wages Act 1936)
यह कानून सुनिश्चित करता है कि श्रमिक को समय पर और किसी भी अनधिकृत कटौती के बिना मजदूरी / वेतन मिलना चाहिए. वेज एक्ट 1936 की धारा 6 में कहा गया है कि मजदूर को मजदूरी का भुगतान मुद्रा में ही किया जाना चाहिए ना कि मुद्रा जैसी किसी अन्य चीज में जैसे गाय, बकरी या ऐसी ही कोई मुद्रा तुल्य चीज.
3. औद्योगिक विवाद एक्ट 1947 (Industrial Disputes Act 1947):-
इस अधिनियम में स्थायी कर्मचारियों की बर्खास्तगी के बारे में प्रावधान हैं. इसमें यह बताया गया है कि किसी कर्मचारी को कैसे नौकरी से निकाला जा सकता है.
इस कानून के अनुसार, एक कर्मचारी जो एक वर्ष से अधिक समय से कार्यरत है, उसे केवल तभी नौकरी से निकाला जा सकता है जब उपयुक्त सरकारी कार्यालय / संबंधित प्राधिकारी द्वारा अनुमति मांगी गई हो और अनुमति दी गई हो.
बर्खास्तगी से पहले एक कर्मचारी को वैध कारण दिए जाने चाहिए. स्थायी नौकरी वाले कर्मचारी को केवल सिद्ध कदाचार या कार्यालय से आदतन अनुपस्थिति के लिए नौकरी से बाहर निकाला जा सकता है.
4. न्यूनतम मजदूरी एक्ट, 1948 (Minimum Wages Act,1948)
यह कानून विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के श्रमिकों को न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करता है. राज्य और केंद्र सरकारों को काम और स्थान के अनुसार मजदूरी तय करने की शक्ति प्राप्त है.
यह वेतन 143 से 1120 रुपये प्रतिदिन के बीच हो सकता है. भारत के राज्यों में यह न्यूनतम मजदूरी अलग-अलग हो सकती है.
मनरेगा योजना के तहत अकुशल कार्यों के लिए प्रतिदिन औसत मजदूरी दर में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और अब यह 182 रुपये से बढ़कर 2020-21 के लिए 202 रुपये हो गयी है.
एक मनरेगा मजदूर को दादरा और नगर हवेली में 258 रुपये और महाराष्ट्र में 238 रुपये और पश्चिम बंगाल में 204 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं.
5. मातृत्व लाभ एक्ट, 1961 (Maternity Benefits Act, 1961):-
यह अधिनियम गर्भवती महिला कर्मचारियों के लिए मातृत्व अवकाश प्रदान करता है, यानी काम से अनुपस्थित होने के बावजूद पूरी सैलरी का भुगतान. इस अधिनियम के अनुसार, महिला श्रमिक मातृत्व अवकाश के अधिकतम 12 सप्ताह (84 दिन) की हकदार हैं.
यह कानून उन सभी संगठित और गैर-संगठित, सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों में लागू होगा जहाँ पर 10 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. इसलिए यह कानून गर्भावस्था और प्रसव के बाद महिला श्रमिकों की नौकरी की रक्षा करता है. इस अधिनियम में 2017 में संशोधन किया गया था.
6. कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों का यौन उत्पीड़न एक्ट, 2013(Sexual Harassment of Women employees at Workplace Act, 2013):-
यह एक्ट कार्यस्थल पर महिला श्रमिकों के किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न पर प्रतिबंध लगाता है. यह एक्ट 9 दिसंबर 2013 से लागू हुआ था.
यौन उत्पीड़न के अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं;
a) पोर्नोग्राफी दिखाना
b) यौन सम्बन्ध बनाने की मांग या अनुरोध करना
c) यौन संबंधी टिप्पणी
d) अनचाहा शारीरिक संपर्क करना
e) यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक क्रिया या गैर-मौखिक व्यवहार
f) अभद्र टिप्पणी
यह कानून सभी सार्वजनिक या निजी और संगठित या असंगठित क्षेत्र के ऑफिस में लागू किया जाना चाहिए जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं.
यह कानून सभी महिलाओं (सभी उम्र की महिला कर्मचारियों और उनकी रोजगार की स्थिति से इतर) की सुरक्षा करता है. अधिकांश भारतीय नियोक्ताओं ने इस कानून को लागू नहीं किया है जिनमें कुछ भारतीय और कुछ मल्टीनेशनल कम्पनियाँ भी शामिल हैं.
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