दलित साहित्य की त्रसिदी यह है कि संपादकों के पास जाने से उनकी पत्रिकाओं का भी अंत हो जाता है।

वर्ष 2020 के जाते - जाते यह एक दुखद संयोग हआ कि एक साथ उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र और गुजरात में हिंदी , मराठी और गुजराती के तीन दलित संपादक कोरोना महामारी का शिकार होकर चल बसे इन तीनों में ही एक बात सामान्य थी । तीनों पर बुद्ध का प्रभाव था और तीनों ने डॉ . आंबेडकर की पत्रकारिता से प्रेरित होकर पत्रिकाएं निकाली थीं । डॉ व प्रियदर्शी गणेश भाई ज्योतिकर का जन्म अहमदाबाद के एक दलित मिल मजदूर के घर में 1937 में हुआ था । कोरोना के इलाज के लिए वह स्थानीय अस्पताल में भर्ती हुए और स्वस्थ होकर घर भी आ गए । पर जैसे ही उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी कोरोना में चल बसीं , तो उनकी सांसें रुक गईं । वर्ष 1959 में उन्होंने गुजराती मासिक ज्योति का प्रकाशन आरंभ किया था जिसका उद्देश्य था ' समता , स्वतंत्रता और बंधुत्व । पत्रकारिता तथा कानून उनके शोध और अध्ययन के विषय थे । गुजराती भाषा की आंबेडकरी पत्रकारिता में महत्त्वपूर्ण शोध ग्रंथ लिखने और संपादन करने के लिए उन्हें गुजरात सरकार का ' आंबेडकर रत्न ' सम्मान मिला था । उन्होंने कई मौलिक और आधारभूत ग्रंथों की रचना की , जिनमें गुजरात के आंबेडकरी आंदोलन का इतिहास पर उन्होंने वर्ष 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी । इस ग्रंथ में सामाजिक , राजनीतिक और साहित्यिक विषयों के साथ - साथ ' गुजराती आंबेडकरी दलित पत्रकारिता का इतिहास ' भी शामिल था । जैसे कि अपने शोध ग्रंथ में उन्होंने मुक्ति संग्राम ( 1948-54 ) , नवयुग ( 1930 31 ) , इंकलाब ( 1953 ) समानता , हुंकार ( 1951-54 ) , जय भीम ( 1947 ) , चैलेंज आदि प्रमुख गुजराती पत्रों को इतिहास में दर्ज किया । दयानाथ निगम ( 1952-2020 ) का जन्म उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के तमकुही गांव में 1952 में हुआ था । वर्ष 1995 में वह पत्रकारिता में आए और अप्रैल , 1999 में मासिक पत्रिका अम्बेडकर इन इंडिया की शुरुआत की । उन्होंने इस पत्रिका के 227 अंक निकाले तथा अगस्त , 2020 में इसका उदासीन थे तथा सुविधाभोगी वर्ष से आखिरी अंक आया । दयानाथ निगम साहित्य और पत्रकारिता के प्रति उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । इस लेखक को उन्होंने बताया था , मैं कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों से मिला और उन्हें अपनी पत्रिका भेंट की । मैंने उनसे मदद की अपेक्षा की , तो उन्होंने ऐसा व्यवहार किया , जैसे मेरी पत्रिका मुफ्त में प्राप्त कर वे मुझ पर कोई एहसान कर रहे हैं । जबकि वे शादियों की पार्टियों में , सैर - सपाटों पर , शादी की वर्षगांठ और बच्चों के जन्मदिन पर अमीरी का प्रदर्शन करते
र्ष 2020 के जाते - जाते यह एक दुखद संयोग हआ कि एक साथ उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र और गुजरात में हिंदी , मराठी और गुजराती के तीन दलित संपादक कोरोना महामारी का शिकार होकर चल बसे इन तीनों में ही एक बात सामान्य थी । तीनों पर बुद्ध का प्रभाव था और तीनों ने डॉ . आंबेडकर की पत्रकारिता से प्रेरित होकर पत्रिकाएं निकाली थीं । डॉ व प्रियदर्शी गणेश भाई ज्योतिकर का जन्म अहमदाबाद के एक दलित मिल मजदूर के घर में 1937 में हुआ था । कोरोना के इलाज के लिए वह स्थानीय अस्पताल में भर्ती हुए और स्वस्थ होकर घर भी आ गए । पर जैसे ही उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी कोरोना में चल बसीं , तो उनकी सांसें रुक गईं । वर्ष 1959 में उन्होंने गुजराती मासिक ज्योति का प्रकाशन आरंभ किया था जिसका उद्देश्य था ' समता , स्वतंत्रता और बंधुत्व । पत्रकारिता तथा कानून उनके शोध और अध्ययन के विषय थे । गुजराती भाषा की आंबेडकरी पत्रकारिता में महत्त्वपूर्ण शोध ग्रंथ लिखने और संपादन करने के लिए उन्हें गुजरात सरकार का ' आंबेडकर रत्न ' सम्मान मिला था । उन्होंने कई मौलिक और आधारभूत ग्रंथों की रचना की , जिनमें गुजरात के आंबेडकरी आंदोलन का इतिहास पर उन्होंने वर्ष 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी । इस ग्रंथ में सामाजिक , राजनीतिक और साहित्यिक विषयों के साथ - साथ ' गुजराती आंबेडकरी दलित पत्रकारिता का इतिहास ' भी शामिल था । जैसे कि अपने शोध ग्रंथ में उन्होंने मुक्ति संग्राम ( 1948-54 ) , नवयुग ( 1930 31 ) , इंकलाब ( 1953 ) समानता , हुंकार ( 1951-54 ) , जय भीम ( 1947 ) , चैलेंज आदि प्रमुख गुजराती पत्रों को इतिहास में दर्ज किया । दयानाथ निगम ( 1952-2020 ) का जन्म उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के तमकुही गांव में 1952 में हुआ था । वर्ष 1995 में वह पत्रकारिता में आए और अप्रैल , 1999 में मासिक पत्रिका अम्बेडकर इन इंडिया की शुरुआत की । उन्होंने इस पत्रिका के 227 अंक निकाले तथा अगस्त , 2020 में इसका उदासीन थे तथा सुविधाभोगी वर्ष से आखिरी अंक आया । दयानाथ निगम साहित्य और पत्रकारिता के प्रति उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । इस लेखक को उन्होंने बताया था , मैं कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों से मिला और उन्हें अपनी पत्रिका भेंट की । मैंने उनसे मदद की अपेक्षा की , तो उन्होंने ऐसा व्यवहार किया , जैसे मेरी पत्रिका मुफ्त में प्राप्त कर वे मुझ पर कोई एहसान कर रहे हैं । जबकि वे शादियों की पार्टियों में , सैर - सपाटों पर , शादी की वर्षगांठ और बच्चों के जन्मदिन पर अमीरी का प्रदर्शन करते।  
  
                   प्रोफेसर एवं अध्यच्छ ,हिंदी विभाग,                             दिल्ली
                   विसवविद्यालय

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