कुछ महत्वपूर्ण वंश
गढ़वाल वंश गढ़वाल वंश के संस्थापक चंद्र देव को माना जाता है और उनकी राजधानी वाराणसी है
क्रत्यकलरूप कल रूप ग्रंथ लक्ष्मीधर द्वारा लिखा गया था और इनके अंतिम शासक जयचंद्र को माना जाता है जिनकी मृत्यु 1194 ईस्वी में हो गई थी।
सिसोदिया वंश सिसोदिया
वंश की राजधानी चित्तौड़ को माना जाता है और यह भगवान राम से संबंध रखते हैं
इनके प्रसिद्ध शासक जो माने जाते हैं महाराणा प्रताप माने जाते हैं
परमार वंश
परमार वंश का संस्थापक उपेंद्र राज को माना जाता है इन की राजधानी धारा ( उज्जैन) में है और इनकी रचना नव शशांक चरित्र परम गुप्त द्वारा लिखी गई
आदि हैं धनंजय ने रूप दशक 10 रूप लोक की रचना की थी
भूषण झील का निर्माण राजा भोज द्वारा 1000-1050 के बीच में किया गया था और सरस्वती मंदिर तथा संस्कृत विद्यालय का निर्माण राजा भोज द्वारा किया गया था ।
युक्तिकलरूप की रचना भोज द्वारा की गई थी
भोजपुर नगर की स्थापना राजा भोज द्वारा की गई थी चंदेल वंश
इस वंश की नींव बुंदेलखंड जोभक्ति में की गई थी
इस वंश के जो संस्थापक माने जाते हैं राजा नन्नुक(831) ईसवी माने जाते हैं।
इनका सबसे शक्तिशाली
शासक खुजराहो को माना जाता है ।
कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण खुजराहो द्वारा ही किया गया था 999 ईसवी में।
पर बहुत चंद्र दोय की रचना कृष्ण मित्र द्वारा की गई थी
परमार देव की हत्या अजय देव द्वारा की गई थी
1202 ईसवी में
सोलंकी चालुक्य वंश इस वंश की नींव गुजरात में अकेली थी और इस वंश का संस्थापक मूलराज को माना जाता है जिस का शासन काल 942 से 945 ईसवी के बीच में माना जाता है और उनकी राजधानी आहिल वार्ड है दिलवाड़ा का जैन मंदिर इन्हीं के द्वारा सामंत विमल द्वारा बनवाया गया था माउंट आबू पर
और जयसिंह की उपाधि जो मानी जाती है सिंह राज मानी जाती है
इनका शासनकाल 1094 ईस्वी से 1153 ईसवी के बीच में माना जाता है
रूद्र महाकाल का मंदिर का निर्माण इन्हीं के द्वारा किया गया था।
1178 इसमें गौरी को परास्त कर अजय पाल ने पाल वंश की नींव रखी और इस वंश का अंतिम शासक भीम द्वितीय को माना जाता है
बघेल वंश
बघेल वंश का संस्थापक लावण प्रसाद को माना जाता है
करण द्वितीय यह अंतिम हिंदू सांसक हु
कल्कूरी वंश के नीव त्रिपुरा मैं मानी जाती है
किस वंश का शासक गोकुल प्रथम को माना जाता है जिसका शासनकाल 845 ईसवी तक रहा
गांगे विक्रमादित्य का शासन काल 1019 से 1041 ईसवी के बीच में माना जाता है
यह शैव धर्म के अनुयाई थे।
लक्ष्मी कर्ण की उपाधि लक्ष्मी की उपाधि जो मानी जाती है त्रिकाल लिंग अधिपति मने गाती है और इस वंश के प्रसिद्ध कवि राजशेखर हुए
काव्य रूप उपाधि कलचुरी शासक की मानी जाती है
राजशेखर की रचना काव्यमीमांसा एवं विधि साल भांजी का को माना जाता है
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