राजतरंगिणी राजतरंगिणी कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। जिसकी रचना 1148 से 1150 के बीच हुई। कश्मीर के इतिहास पर आधारित इस ग्रंथ की रचना में कल्हण ने ग्यारह अन्य ग्रंथों का सहयोग लिया है जिसमें अब केवल नीलमत पुराण ही उपलब्ध है।यह ग्रंथ संस्कृत में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमबद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है। इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ई. के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं क्रमानुसार विवरण दिया गया हैं| यह कश्मीर का राजनीतिक उथलपुथल का काल था। आरंभिक भाग में यद्यपि पुराणों के ढंग का विवरण अधिक मिलता है।, परंतु बाद की अवधि का विवरण पूरी ऐतिहासिक ईमानदारी से दिया गया है।अपने ग्रंथ में कल्हण ने इस आदर्श को सदा ध्यान में रखा है इसलिए कश्मीर के ही नहीं, तत्काल भारतीय इतिहास के संबंध में भी राजतरंगिणी में बड़ी महत्त्वपूर्ण और प्रमाणिक सामग्री प्राप्त होती है। राजतंरगिनी के उद्धरण अधिकतर इतिहासकारों ने इस्तेमाल किये है। इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।कल्हण की राजतरंगिणी में कुल आठ तरंग एवं लगभग 8000 श्लोक हैं। पहले के तीन तरंगों में कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है। चौथे से लेकर छठवें तरंग में कार्कोट एवं उत्पल वंश के इतिहास का वर्णन है। अन्तिम सातवें एवं आठवें तरंग में लोहार वंश का इतिहास उल्लिखित है। इस पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख है।कल्हण ने पक्षपातरहित होकर राजाओं के गुण एवं दोषों का उल्लेख किया है। पुस्तक के विषय के अन्तर्गत राजनीति के अतिरिक्त सदाचार एवं नैतिक शिक्षा पर भी प्रकाश डाला गया है।कल्हण ने अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है।रचना कालयह माना जाता है कि ‘राजतरंगिणी’ 1147 से 1149 ईस्वी के बीच लिखी गई। बारहवीं शताब्दी का यह काल कश्मीर के इतिहास का एक ऐसा काल है जिसे यूं भी कहा जा सकता है कि आज वही इतिहास अपने आपको फिर से दोहरा रहा है। कल्हण के समय कश्मीर राजनीतिक अस्थिरता और उठापटक के दौर से गुजर रहा था। कल्हण ने कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासक दिद्दा का उल्लेख किया है, जो 950-958 ईस्वी में राजा क्षेमगुप्त (क्षेमेन्द्र गुप्त) की पत्नी थी और शारीरिक रूप से कमज़ोर पति के कारण उसी ने सत्ता का पूरी तरह उपयोग किया। वह पति की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठी और उसने एक साफ़ सुथरा शासन देने की कोशिश करते हुए भ्रष्ट मंत्रियों और यहां तक कि अपने प्रधानमंत्री को भी बर्खास्त कर दिया लेकिन दिद्दा को सत्ता और वासना की ऐसी भूख थी, जिसके चलते उसने अपने ही पुत्रों को मरवा दिया। वह पुंछ के एक ग्वाले तुंगा से प्रेम करती थी, जिसे उसने प्रधानमंत्री बना दिया। इतिहास का ऐसा वर्णन सिवा कल्हण के किसी और संस्कृत कवि ने नहीं किया। 120 छंदों में लिखित ‘राजतरंगिणी’ में यूं तो कश्मीर का आरम्भ से यानी ‘महाभारत’ काल से लेकर कल्हण के काल तक का इतिहास है, लेकिन मुख्य रूप से इसमें राजा अनंत देव के पुत्र राजा कैलाश के कुशासन का वर्णन है। कल्हण बताते हैं कि कश्मीर घाटी पहले एक विशाल झील थी जिसे कश्यप ऋषि ने बारामुला की पहाड़िया काटकर ख़ाली किया। श्रीनगर शहर सम्राट अशोक महान ने बसाया था और यहीं से बौद्ध धर्म पहले कश्मीर घाटी में और फिर मध्य एशिया, तिब्बत और चीन पहुंचा।[1]राजतरंगिणी राजतरंगिणी का महत्त्व'राजतरंगिणी' एक ऐसी रचना है, जिसे संस्कृत के ऐतिहासिक महाकाव्यों का 'मुकुटमणि' कहा जा सकता है। इसके रचयिता कश्मीरी कवि 'कल्हण' हैं। संस्कृत साहित्य में इतिहास को इतिहास मानकर लिखने वाले तथ्यों को तिथि आदि के प्रामाणिक-साक्ष्य और क्रम के साथ प्रस्तुत करने वाले ये अब तक ज्ञात पहले कवि हैं यही कारण है कि इनकी कृति 'राजतरंगिणी' का देश-विदेश में सर्वत्र आदर हुआ है। यह कश्मीर के राजाओं का विस्तृत इतिहास है, जिसका रचना-शिल्प बहुत कुछ महाभारत जैसा और अनेक काव्य-गुणों से समृद्ध है। इसमें महाभारत-काल से आरम्भ कर 1150 ईसवी तक के कश्मीरी नरेशों का इतिवृत्त तथा चरित्रांकन अत्यन्त हृदय तथा प्रसादिक शैली में किया गया है। राजतरंगिणी आठ तरंगों में विभक्त है, जिनमें कुल लगभग 7826 श्लोक हैं। प्रारम्भ में छह तरंग छोटे तथा अन्तिम दो तरंग बहुत बड़े हैं, जिनमें आठवां तरंग, समस्त ग्रन्थ के आधे परिमाण से भी अधिक है। अपने लेखन के समय से ही 'राजतरंगिणि' अत्यन्त लोकप्रिय रही है।[2]इतिहास का सूत्रपातकल्हण पारम्परिक अनुश्रुतियों के आधार पर, पौराणिक शैली में जलोद्भव नामक असुर के वध और प्रजापति कश्यप द्वारा कश्मीर मण्डल की स्थापना से इस इतिहास का सूत्रपात करते हैं। विक्रम पूर्व बारहवीं शताब्दी के किसी गोनन्द नामक राजा की कथा से राजचरित का क्रम आरम्भ होता है। उनके इस वर्णन का बहुत कुछ आधार 'नीलमतपुराण' है, इसके अतिरिक्त इस विषय में उन्होंने अपने से पूर्व लिखे गए ग्यारह ग्रन्थों और पहले के राजाओं के अभिलेख, प्रशस्तिपत्र एवं वंशावलियों के देखे जाने का भी उल्लेख किया है।[3] कवि, इस वर्णन में ज्यों-ज्यों अपने समय की ओर अभिमुख होते जाते हैं, यह पौराणिकता एवं कल्पना-प्रवणता धीरे-धीरे कम होती जाती है और यथार्थ का ठोस धरातल उभरता दिखलाई पड़ता है। 812 ईसवी तक के राजाओं का वर्णन बिना तिथि के ही चलता है, किन्तु 813-814 ईस्वी से इस वर्णन में तिथिक्रम का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। अष्टम तरंग तो कवि की स्वयं आंखों देखी और अनुभूत घटनाओं का प्रामाणिक लेखा-जोखा है। संक्षेप में इसके प्रत्येक तरंग में राजाओं का विवरण इस प्रकार है-प्रथम तरंगगोनन्द प्रथम से लेकर अन्ध युधिष्ठिर तक 75 राजाओं का विवरण है।द्वितीय तरंग6 राजाओं के 192 वर्षों के शासनकाल का अंकन किया गया है।तृतीय तरंगगोनन्द वंश के अन्तिम राजा बालादित्य तक दश राजाओं के 536 वर्षों के राज्यकाल का विवरण है।चतुर्थ तरंग260 वर्षों तक राज्य करने वाले 17 नृपों का इतिहास निरूपित है।पंचम तरंगअवन्तिवर्मा के राज्यारोहण के साथ उत्पल वंश के सूत्रपात का वर्णन तथा कल्यापाल वंशज संकटवर्मा, सुगन्धादेवी और शंकर वर्मन के राज्यकाल का निरूपण है।षष्ठ तरंग10 राजाओं के, 936 से 1003 ईस्वी तक के शासनकाल का विवरण दिया गया है।सप्तम तरंग6 राजाओं के सन् 1003 से 1101 ईस्वी तक के समय का चित्रण है।अष्टम तरंगसातवाहन वंश के, उच्चल, सुस्सल, भिक्षाचर और जयसिंह आदि राजाओं की जीवनगाथा तथा कृत्यों का प्रत्यक्षीकरण कराया गया है। प्रथम चार तरंगों में ऐतिहासिक तथ्यपरकता की दृष्टि से कई स्थल कल्हण में संदिग्ध हैं। वे पुराणों और आख्यानों से प्राप्त अतिप्राकृत और अविश्वसनीय घटना-प्रसंगों का भी विवरण विश्वासपूर्वक दे देते हैं। पर पांचवें तरंग से जैसे-जैसे वे अपने समय के निकट आते हैं, वे एक खरे इतिहासकार की भांति तथ्यों को जांच परख कर प्रस्तुत करते है, वे तथ्यों की जांच के लिये उपलब्ध सामग्री का हवाला भी देते हैं।सिंध पर पहला मुस्लिम आक्रमणसन् 712 ईस्वी में सिंध पर पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ और 1000 ईस्वी के आस-पास महमूद गजनी ने भारत को रौंदना शुरू किया। कल्हण ने षष्ठ और अष्टम तरंगों में देश की राजनीतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों पर दूरगामी प्रभाव छोड़ने वाले इन आक्रमणों का उल्लेख किया है। कश्मीर में मुस्लिम संस्कृति के प्रवेश का भी वे संकेत देते हैं।राजा हर्ष का उत्थान और पतनकल्हण ने राजा हर्ष के उत्थान और पतन का जो विशद विवरण दिया है, वह भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। किशोरावस्था में हर्ष बड़ा गुणानुरागी और काव्यात्मक प्रवृत्ति वाला था। उसका लोभी पिता कलश विद्वानों से द्रोह रखता था, पर हर्ष स्वयं भूखा रहकर अपना खर्च पंडितों और कवियों को दे डालता था[4] उसने राज्यारूढ होने पर अपने विद्वत्प्रेम को चरितार्थ किया। प्रजा की प्रार्थना सुनने के लिए तो उसने अपने प्रसाद के चारों ओर बड़े-बड़े घंटे लगवा दिये थे, जिनके बजते ही वह प्रार्थियों से स्वयं मिलने पहुंच जाता। यहां तक कि कर्नाटक के राजा से विद्यापति की उपाधि पाने वाले विल्हण भी हर्ष के काव्य और कला के प्रति अनुराग की कथा सुनकर उसके लिये स्पृहा करता था।[5] पर इसी हर्ष को धीरे-धीरे चाटुकारों ने घेर लिया। उसका अन्त:पुर सुंदरियों से भर गया। वह विलासी बन गया और अविवेकी अमात्यों के परामर्श पर जनता को लूटने लगा। उसने योग्य मंत्री कंदर्प को बंदी बनाने का प्रयास किया, अपने ही भतीजों की हत्या करवायी, यहां तक कि देवालयों से स्वर्ण और रत्न भी उसने लूटे। कर्नाटक के राजा पर्माडि (विक्रमादित्य षष्ठ) की पत्नी चन्दा (चन्द्रावती) का चित्र देखकर वह इतना कामातुर हो उठा कि कर्नाटक के राजा से युद्ध कर उसकी रानी को प्राप्त करने की उसने ठान ली।[6] वह कर्नाटक तक आक्रमण करने न पहुंच सका, पर धूर्त लोग रानी चन्द्रा के नाम पर उससे रुपया लूटते रहे। अन्त में बड़ी कारुणिक और विडंबनामय स्थितियों में हर्ष की जीवनलीला समाप्त हुई। कल्हण ने राजा हर्ष के उत्थान और मर्मान्तक पतन का रोमांचक इतिहास 1400 पद्यों में लिखा है, और यह पूरा अंश अपने आप में उनके समय का न केवल कच्चा चिट्ठा है, वह एक विराट महाकाव्य भी है। इसी प्रकार अवन्तिवर्मा, कलश, रानी दिद्दा आदि के शासनकाल के प्रसंग भी अपने आप में अलग-अलग महाकाव्यों का आस्वाद देते हैं तथा कश्मीर के कुछ शताब्दियों के इतिहास को भी प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करते हैं।समग्र अष्टम तरंगकवि का भोगा हुआ अपना वर्तमान ही है। यह समय कश्मीर के इतिहास में, वंशानुगत संघर्षों, षड्यन्त्रों, विद्रोहों तथा रक्तरंजित क्रान्तियों का काल था, उस समय काश्मीर का जनजीवन तथा प्रशासन दोनों ही अस्थिर तथा भयग्रस्त थे। कल्हण ने हर्ष (सन् 1089-1101 ईस्वी) के जीवन, नैतिक पतन, विश्वासघात तथा दु:खद अंत का ऐसा प्रभावी चित्रण किया है, जिसे पढ़कर रोमांच हो जाता है। कश्मीर के कुलीन अमीरों के रक्तरंजित अत्याचार, उनके आपसी संघर्ष, तत्कालीन अकाल, जल-प्लावन, अग्निदाह आदि प्राकृतिक विपत्तियों का जो वर्णन कवि ने किया है उसमें उनकी अपनी भोगी हुई पीड़ा के दंश भी विद्यमान हैं। अपने देश और काल की यह दु:खद स्थिति कवि को मर्मान्तक वेदना दे रही थी, किन्तु वह विवश था। परिस्थितियों ने उसे एकाकी बना दिया था। कदाचित् इन्हीं परिस्थितियों से प्रेरित होकर अपने ढंग से उनका प्रतिकार करने की भावना से ही कवि ने लेखनी का यह शस्त्र उठाया था। 'राजतरंगिणी' की रचना उसी का परिणत फल है।राजतरंगिणी ऐतिहासिक कृति'राजतरंगिणी' एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। ग्रन्थाकार के मतानुसार एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वैष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है-श्लाध्य: स एव गुणवान् रागद्वेषबहिष्कृता।भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती॥[7]अपनी कृति में उन्होंने इस कसौटी का पूर्णरूप से पालन किया है। राजतरंगिणी में राजाओं के चारित्रिक पतन एवं कश्मीरी लोगों के प्रवंचनामय चरित्र का वे खुलकर उद्घाटन करते हैं। मन्त्रियों के पारस्पिरिक विरोध, सेनाध्यक्षों में मतभेद, सैनिकों में अनुशासनहीनता, पुराहितों में दम्भ तथा षड्यन्त्रकारिता, जनसामान्य के गृह-कलह और छल-प्रपंच का स्पष्ट अंकन करने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। यह सब होते हुए भी तरंगिणीकार की कश्मीरभूमि के प्रति आत्मीय-आस्था और प्रीति अक्षुण्ण और अडिग है। अपनी जन्मभूमि को स्वर्ग से भी अधिक निरूपित करते हुए वे कहते हैं कि ऊँचे-ऊँचे विद्याभवन, केसर, शीतल जल और द्राक्षा- ये सब स्वर्ग में भी दुर्लभ वस्तुएं जिस कश्मीर में सामान्यत: प्राप्य हैं उसकी तुलना भला और किससे की जा सकती है-विद्यावेश्मानि तुङ्गानि कुङ्कुमं साहिमं पय:।द्राक्षेति यत्र सामान्यमस्ति त्रिदिवदुर्लभम्॥[8]फिर भी राजतरंगिणी कोरा इतिहास ग्रन्थ ही नहीं है। काव्यात्मक चारुता का सन्निवेश भी उसमें देखा जा सकता है। लक्षण ग्रन्थों की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका महाकाव्यत्व भले ही उत्पन्न न होता हो, किन्तु है वह चित्तावर्जक काव्य ही, और अपने आकारगत तथा विषयगत महत्त्व के कारण इसे एक पृथक् शैली का ऐतिहासिक महाकाव्य कहने में किसी को भी कोई अनुपपत्ति नहीं हो सकती। महाकवि कल्हण अमृतस्यन्दी सुकवि के गुणों की वन्दना करते हुए उन्हें कवि और वर्णनीय विषय दोनों को अमर कर देने वाला रसायन स्वीकार करते हैं[9] सिद्ध करते है।[10]उनके अनुसार, जिनकी भुजाओं की छत्रछाया में समुद्र सहित यह धरती सुरक्षित रहती है, वे बड़े-बड़े बलशाली राजागण जिसकी कृपा के बिना स्मरण भी नहीं किये जाते वह प्रकृति का सर्वोत्कृष्ट कविकर्म ही नमस्कार योग्य है-भुजवनतरुच्छायां येषां निषेव्य महौजसांजलधिरशनामेदिन्यासीदसावकुतोभया ॥स्मृतिमपति न ते यान्ति क्ष्मापा विना यदनुग्रहंप्रकृतिमहते कुर्मस्तस्मै नम: कविकर्मणे॥[11]भाषा और शैलीसहस्रों वर्षों की कालावधि में उत्पन्न, भिन्न-भिन्न शील, स्वभाव तथा इतिवृत्त वाले विविध नरेशों का वर्णन होने के कारण इसकी शैली में सतत गत्वरता और एक प्रकार की सामासिकता है, अत: अन्य महाकाव्यों की भांति श्रृंगार, वीर, हास आदि रसों का तथा आलम्बन-उद्दीपन के रूप में सोद्देश्य किये गये प्राकृतिक वर्णनों का वैसा चमत्कार तो नहीं मिलता। फिर भी प्रसंगानुसार, सभी रसों का उचित सन्निवेश तथा इतिवृत्त की पीठिका के रूप में प्रकृति के चित्रमय वर्णनों की उपलब्धि यहां देखी जा सकती है।शान्त रसहमारे आद्य इतिहास महाभारत की भांति राजतरंङ्गिणी का अंगी रस भी 'शान्त' है। कल्हण, एक दार्शनिक की भांति संसार की क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए काव्यशास्त्रीय दृढ़ता से 'शान्त' रस की सर्वोत्कृष्टता सिद्ध करते हैं-क्षणभङ्गिनि जन्तूनां स्फुरिते परिचिन्तिते।मूर्धाभिषेक: शास्तस्य रसस्यात्र विचार्यताम्॥[12]छंदतरंगिणी की शैली सामान्यत: सरल-तरल है। कवि ने अपनी रचना में वैदर्भी-रीति तथा अनुष्टुप् छन्द का ही आश्रय लिया है, किन्तु कहीं-कहीं पांचाली और गौड़ीरीति तथा बीच-बीच में वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडित, हरिणी आदि बड़े छन्दों का भी प्रयोग दिखलाई पड़ता है।अलंकारअलंकारों का प्रयोग भी सहज और अकृत्रिम रूप से हुआ हैं। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, दीपक, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त आदि अर्थालंकार तथा अनुप्रास आदि शब्दालंकार स्वाभाविक रूप से उपस्थित हुए हैं। कश्मीर वर्णन में यह उत्प्रेक्षा कितनी रमणीय है-असन्तापार्हतां जानन् यत्र पित्रा विनिर्मिते।गौरवादिव तिग्मांशुर्धत्ते ग्रीष्मेऽप्यतीव्रताम्॥[13]पिता कश्यप जी के द्वारा स्थापित किए गए कश्मीर-मण्डल को ताप देना उचित नहीं है मानो यह सोचकर वहां ग्रीष्म में भी सूर्य अपनी किरणों में तीखापन नहीं लाते। ब्राह्मणों के अपकार रूप दुष्ट-कर्म से तारापीड नामक राजा नष्ट हो गया। इस वर्णन में कवि ने अग्नि और मेघ का यह सुन्दर दृष्टान्त प्रस्तुत किया है-योऽयं जनोपकरणाय श्रयत्युपायंतेनैव तस्य नियमेन भवेद् विनाश:।धूमं प्रसौति नयनान्ध्यकरं यमग्नि-र्भूत्वाम्बुद: स शमयेत् सलिलैस्तमेव॥[14]राजतरंगिणी में स्थान-स्थान पर सूक्तिमुक्ताप्रसविनी पद्य-सूक्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। जिनमें कवि के संघर्षमय, प्रौढ़ जीवन का अनुभव, आभा बनकर झांकता प्रतीत होता है। यदि शीलरूपी चिन्तामणि का विगलन हो गया तो फिर जीवन में सारे दुर्गुण क्रमश: किस प्रकार आते-जाते हैं इसका वर्णन देखिए-प्रागुन्मीलति दुर्यश: सुविषमं गर्ह्योऽभिलाषस्ततोधर्म: पूर्वमुपैति संक्षयमथो श्लाघ्योऽभिमानक्रम:।सन्देहं प्रथमं प्रयात्यभिजनं पश्चात्पुनर्जीवितंकिं नाभ्येति विपर्ययं विगलने शीलस्य चिन्तामणे:॥[15]कवि ने तत्कालीन राजाओं की विलासिता, नृशंसता और मूर्खता का खुलकर चित्रण किया है। इस समय के नरेश, दुर्लभ मृगनयनियों को प्राप्त करने में, घोड़ों की ख़रीद-फरोक्त में, विट और वैतालिकों के द्वारा अपनी प्रशंसा करवाने में ही अपने धन का अपव्यव कर डालते हैं[16] प्रजारक्षण में विनियुक्त उनका सम्पूर्ण समय रूठी कामिनियों को मनाने में, घोड़ा-हाथी आदि की ख़रीददारी में और नौकरों के साथ शिकार करने में ही बीत जाता है।[17] अपनी युक्तियों में तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों से उद्धृत अनेक मार्मिक चित्र कवि ने उपस्थित किए हैं, जिनमें अनुभूति और संवेदना की निश्छल अभिव्यक्ति हुई है।
Sensex क्या होता है और कैसे बनता है?
क्या आप जानते है सेंसेक्स क्या होता है (What is Sensex in Hindi)? आपने अक्सर TV पर या फिर अखबारों में सेंसेक्स शब्द को पढ़ा या देखा होगा। कभी आप देखते है Sensex आज इतने अंक ऊपर चला गया तो कभी आप देखते है की सेंसेक्स आज इतने अंक नीचे गिरा। जब भी आप Share Market में निवेश करने के बारे में सोचते हैं तब आपके मन में Sensex के बारे में जरुर आया होगा. पर आप इन शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाते क्योंकि आप नहीं जानते की Sensex क्या होता है? तो आज की हमारी पोस्ट सेंसेक्स पर केंद्रित है। आज हमारी इस पोस्ट के जरिये जानेंगे की सेंसेक्स क्या होता है और इसके जरिये क्या काम होता है?
हम आपको अपनी पहले की पोस्ट में बता चुके है की निफ़्टी क्या होता है। आज हम बात कर रहे है सेंसेक्स की। तो सेंसेक्स भी एक तरह से निफ़्टी की तरह ही होता है पर निफ़्टी की तुलना में सेंसेक्स में मात्र 30 कंपनियों सूचिबद्ध होती है। जहाँ निफ़्टी को निफ़्टी 50 भी कहा जाता है क्योंकि इसमें 50 कंपनियां सूचिबद्ध होती है। आइये विस्तार से सेंसेक्स क्या है के बारे में जानते है।
1. सेंसेक्स क्या होता है (Sensex in Hindi)
2. Sensex कैसे बनता है?
3. Sensex कैसे घटता या बढ़ता है?
4. बेहतर प्रदर्शन करने वाले Top 30 Companies कोन से हैं
5. सेंसेक्स के फायदे
सेंसेक्स क्या होता है (Sensex in Hindi)
Sensex Kya Hota hai Hindi
Sensex शब्द की शुरुआत दीपक मोहोनि द्वारा की गयी थी। यह शब्द sensitive और index शब्दों से मिल कर बना हुआ है। इससे तात्पर्य है की यह संवेदी सूचकांक होता है।
सेंसेक्स हमारे भारतीय Stock Market का BenchMark index है, जो की BSE ( बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) में सूचिबद्ध शेयर्स के भाव में होने वाली तेजी और मंदी को बताता है। इसी के जरिये हम इसमें सूचीबध्द 30 सबसे बड़ी कंपनियों के प्रदर्शन की जानकारी हासिल होती है।
सेंसेक्स की बात की जाए तो यह भारत का सबसे पुराना स्टॉक मार्किट इंडेक्स है, जिसकी शुरुआत 1986 में हुई थी।
Sensex जो की एक स्टॉक मार्किट इंडेक्स है और इसका सबसे महत्वपूर्ण काम है कि यह स्टॉक मार्केट में सूचिबद्ध कंपनियों के सभी शेयर्स के भाव को देखता रहे और फिर दिन भर के काम के बाद हमको एक औसत वैल्यू दे जिस से कि हमे स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों के शेयर्स के भावो में होने वाली तेजी और मंदी की सूचना आसानी से मिल सके।
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शेयर बाज़ार क्या है
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) जो की भारत का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है इसके अंतर्गत कुल 30 प्रमुख भारतीय कंपनियां आती हैं। ये कंपनियां मार्किट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से देखा जाए तो बहुत बड़ी होती है यह अभी के समय में भारतीय GDP का कुल 37% है। यह कंपनियां एक प्रकार से भारतीय बाजार के trend को सेट करने का काम करती हैं। और आसान शब्दों में कहें तो भारत की बड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतों को आंकने के लिए बनाये गए सूचकांक जो इन कंपनियों के शेयरों की बढ़ती घटती कीमतों पर नजर रखता है वही सेंसेक्स कहलाता है।
Sensex कैसे बनता है?
अभी हमने बात की सेंसेक्स क्या होता है ? अब हम जानेंगे की Sensex कैसे बनता है और यह किन लोगों द्वारा बनाया जाता है इसके बनने की प्रक्रिया को हम समझेंगे।
जैसा की हम भली-भाँती जानते है की Sensex बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange) का हिस्सा है और सेंसेक्स बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड केवल तीस कंपनियों के शेयर्स के भावो से मिलकर बन हुआ होता है जबकि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कुल कंपनियों का आंकड़ा 6000 से भी ज्यादा है।
जब सेंसेक्स की गणना की जाती है तो उसमें केवल 30 कंपनी जो की मार्किट में प्रमुख है उनके ही शेयर्स को शामिल किया जाता है। इन 30 कंपनियों के शेयर के भावो को शामिल करने के पीछे का कारण यह है कि एक तो इन 30 कंपनियों के शेयर्स सबसे ज्यादा ख़रीदे व बेचे जाते है। दूसरा यह की यह 30 सबसे बड़ी कंपनीयाँ होती है इनका मार्केट कैप स्टॉक एक्सचेंज में सूचिबद्ध सभी शेयर्स का लगभग आधा होता है जो की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। तीसरा कारण है की ये 30 कम्पनीयाँ 13 अलग अलग सेक्टर से चुनी जाती है ये 30 कंपनियां अपने सेक्टर में सबसे बड़ी मानी जाती है।
इन 30 कंपनीयों का चुनाव स्टॉक एक्सचेंज की इंडेक्स कमिटी द्वारा किया जाता है इस कमिटी में कई वर्गों से लोग शामिल होते है जिनमे प्रमुख रूप से सरकार, बैंक और जाने माने अर्थशास्त्री शामिल हो सकते है।
Sensex कैसे घटता या बढ़ता है?
सेंसेक्स इसका काम ही हमें शेयर की जानकारी प्रदान करने का होता है। यह अपने अंतर्गत आने वाली 30 कंपनियों के शेयरों में आए उतार-चढ़ाव पर नजर रखता है। अगर सेंसेक्स में लिस्टेड कंपनियों के बाजार में शेयरों के मूल्य बढ़ रहे हैं तो सेंसेक्स भी बढ़ जाता है और ऊपर चला जाता है। वहीँ अगर सेंसेक्स में लिस्टेड कंपनियों की बाजार में शेयरों के मूल्य गिर रहे होते है तो सेंसेक्स भी गिरने लगता है।
लोन क्या होता है
शेयरों की कीमतों के नीचे जाने और ऊपर जाने का सबसे महत्वपूर्ण कारण होता है उन कंपनियों कंपनी का प्रदर्शन। उदहारण के तौर पर अगर कंपनी ने बाजार में कोई नया और बड़ा प्रोजेक्ट लांच किया है तो संभावना है की कंपनी के शेयरों के दाम बढ़ेंगे। इसी प्रकार कंपनी अगर किसी मुश्किल से गुजर रही होती है तो लोग इसको छोड़ना चाहते है और शेयर ज्यादा मात्रा में बेचे जाने लगते है। शेयर की ज्यादा मात्रा होने से शेयर के दाम घट जाते हैं और सेंसेक्स नीचे की और आने लगता है।
किस आधार पर 30 कंपनियों का चुनाव किया जाता है?
इंडेक्स कमिटी सेंसेक्स में शामिल करने के लिए 30 कंपनीयों के चुनाव के वक़्त जो बातो का ध्यान रखती है, वो इस प्रकार होती है:
1) उस कंपनी के शेयर कम से कम 1 साल या उस से अधिक समय से Stock Exchange पर सूचिबद्ध हो।
2) पिछले एक साल के अंदर जितने दिन भी शेयर बाजार खुला होता है, उन सभी दिनो में उस कम्पनी के स्टॉक का ख़रीदा और बेचा जाना अनिवार्य होता है।
3) हर दिन की औसत ट्रेड की संख्या और वैल्यू के हिसाब से ये कंपनीयाँ देश की सबसे बड़ी 150 कंपनीयों में अवश्य होनी चाहिए।
यही बातें है जो लिस्टिंग के लिए इंडेक्स कमिटी द्वारा ध्यान में रखी जाती है।
बेहतर प्रदर्शन करने वाले Top 30 Companies कोन से हैं
सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियो को 1986 में पहली बार शामिल किया गया था ये सभी कंपनियां वित्तीय रूप से काफी ताक़तवर और मार्किट कैप के हिसाब से भी बहुत बड़ी होती है। इन कंपनियों के शेयरों की मांग Stock Market में हमेशा बनी रहती है। ऐसी कंपनियों को “ब्लू चिप” कम्पनियाँ कहा जाता है। बीएसई यानी की बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स में अभी कुल 31 कंपनियां शामिल है BSE सेंसेक्स में लिस्टेड कंपनियों की लिस्ट कुछ इस प्रकार है
1) Adani Ports and Special Economic Zone Ltd.
2) Asian Paints
3) Axis Bank Ltd.
4) Bajaj Auto Ltd.
5) Bharti Airtel Ltd.
6) Cipla
7) Coal India Ltd.
8) Dr. Reddys Laboratories Ltd.
9) HDFC Bank Ltd
10) Hero MotoCorp Ltd.
11) Hindustan Unilever Ltd.
12) Housing Development Finance Corporation Ltd.
13) ICICI Bank Ltd.
14) ITC
15) Infosys Ltd.
16) Kotak Mahindra Bank Ltd.
17) Larsen & Toubro Ltd.
18) लुपिन
19) Mahindra & Mahindra Ltd.
20) Maruti Suzuki India Ltd.
21) NTPC Ltd.
22) Oil & Natural Gas Corporation Ltd.
23) Power Grid Corporation Of India Ltd.
24) Reliance Industries Ltd.
25) State Bank Of India
26) Sun Pharmaceutical Industries Ltd.
27) Tata Consultancy Services Ltd.
28) Tata Motors
29) Tata Motors – DVR Ordinary
30) Tata Steel Ltd.
31) Wipro Ltd.
इस वक़्त भारतीय बाजार में इन कंपनियों का एक तरीके से कहें तो राज चलता है। ये सारी कंपनियां अपने अपने सेक्टरों में प्रमुख कंपनियां है और हर कंपनी अपने सेक्टर का एक तरीके से सेंसेक्स में प्रतिनिधित्व करती है।
सेंसेक्स के फायदे
वेसे तो सेंसेक्स का सबसे बड़ा फायदा यही होता है की इसके जरिये निवेशक बाजार में होने वाले भविष्य के परिवर्तनो को जान सके और समझ सके और उनके हिसाब से अपना पैसा ठीक तरीके से निवेश कर सके।
पर सेंसेक्स से हमें कुछ ऐसे भी लाभ है जो की वेसे तो सीधे तौर पर ज्यादा कोई असर या फायदा नहीं करते पर indirect रूप से काफी उपयोगी होते है। रूपए की चाल बाजार के अनुरूप बदलती रहती है और जब रूपया मजबूत होता है तो देश में चीज़ें सस्ती होती है। आइये कुछ अलग फायदों के बारे में जानते है।
1) जब कंपनियां सेंसेक्स को ऊपर जाते देखती हैं तो निवेशक भी ऐसी कंपनियों में पैसा लगाने की चाह रखते है और जब निवेशकों से बहुत ज्यादा पैसा इकट्ठा हो जाता है तो कंपनियां grow करती है और expand होती है। और जब भी कोई कंपनी expand होती है तो उसके लिए उसको नए लोगों की आवश्यकता होती है तो ऐसे में वे अधिक लोगों को नौकरी देंगे और इसका सीधा मतलब बेरोजगारी की कमी होगा।
2) जब शेयर बाजार अच्छा होता है और सेंसेक्स ऊपर जाता है तो देश में बहुत से बाहरी निवेशक आने लगते है और जब वो भारतीय कंपनियों में पैसा लगाते है तो इससे रुपये में तेजी आएगी। और रुपया विदेशी मुद्रा के मुक़ाबले में मजबूत होता है। और जब रुपया मजबूत होता है तो इससे चीज़ें सस्ती होने लगती है। जैसे कि विदेश आयत होने वाला सामन रूपए में आई तेज़ी से पहले के मुक़ाबले कम कीमतों पर मिलेगा।
भारतीय शेयर बाजार लगातार ऊंचाइयों की और अग्रसर है एक समय जब इसकी शुरुआत हुयी थी 1990 में तब सेंसेक्स सिर्फ एक हजार हुआ करता था पर आज के समय में यह आंकड़ा पांच अंकीय संख्या तक पहुँच गया है आज के समय में यह 30,000 को पार कर चूका है और हर दिन नए कीर्तिमान रच रहा है । हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भी यह नयी ऊंचाइयों को छुए और निवेशकों को मुनाफा कमाने में मदद करे।
अगर आप बाजार के व्यवहार से अनभिज्ञ है तो शेयर मार्केट आपके लिए एक जोखिम से भरा हुआ निवेश हो सकता है। शेयर बाजार में काफी सोच समझकर ही निवेश करें और निवेश से पहले पूरी जानकारी कर ले।
आशा करते है सेंसेक्स से जुडी जानकारी आपको पसंद आई होगी।
मैं आशा करता हूँ आप लोगों को सेंसेक्स क्या होता है (Sensex in Hindi) के बारे में समझ आ गया होगा. मेरा आप सभी पाठकों से गुजारिश है की आप लोग भी इस जानकारी को अपने आस-पड़ोस, रिश्तेदारों, अपने मित्रों में Share करें, जिससे की हमारे बिच जागरूकता होगी और इससे सबको बहुत लाभ होगा. मुझे आप लोगों की सहयोग की आवश्यकता है जिससे मैं और भी नयी जानकारी आप लोगों तक पहुंचा सकूँ.
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